Thursday 7 August 2014

संसद की गरिमा और देश में शान्ति व सौहाद्रता

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संसद की गरिमा  और  
देश में शान्ति व सौहाद्रता

 
देश में कुछ स्थानों पर सत्ता का प्रभाव ही नैतिक अनुशासन 
शुन्य बनाकर शासन प्रशासन को लुंजपुंज करते हुवे सामाजिक संतुलन 
व आपसी सौहाद्रता को नेस्तनाबूत कर चुका है | परस्पर आरोपों व 
प्रत्यारोपों नें सारी मर्यादाओं को तार-तार कर दिया है | अत: " दूध का 
दूध और पानी का पानी करना जरुरी है |
मोदी सरकार की स्थापना पश्चात पंजीबद्ध हुए दंगे 
और दंगा क्षेत्रों  के शासक दलोंकी जानकारी अब सार्वजनिक होंना चाहिए,जिससे नागरिक  भ्रमित न हो व देश में अशान्ति न फैले ।

इस प्रकार की जानकारी मिलनें से नागरिक खुद ही समझ जायेगे
कि कौन से राजनीतिक दल और उनकी सरकारे 
प्रामाणिकता के साथ  जनता की सेवा व प्रगति कर रही है ? और कौन से दल आरोपों प्रत्यारोपों के माध्यमसे जनता को भ्रमित करके देश में अशांति पैदा करते हुवे सत्ता हथियानें में जुटे हुए है ? 

संसद, हंगामा करनें व अपना ही राग आलापनें का दालान नहीं है, यहाँ सांसदों को बोलनें के समान अवसर, 
पक्ष-विपक्ष द्वारा शांतिपूर्वक सुसभ्य भाषा के उपयोग 
देश व जनहितों की सुरक्षा व प्रगति के विषयों पर  
तर्क संगत सच्चे आकडो की प्रस्तुती करके एकमत से निर्णय लेनें हेतु जनप्रतिनिधित्व करनें का स्थल है |
क्या देश का जनमानस सांसदों को उक्त व्यवस्थाओंसे 
जोडनें के लिए स्वयं आगे बढकर शान्ति व 
सौहाद्रता निर्मित करनें में सफल होगा ?
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