Monday, 20 July 2015

" हमारे लेखनी, विचार और व्यवहारों से क्या फर्क पडता है ? "

" हमारे लेखनी, विचार और व्यवहारों से क्या फर्क पडता है ? "
सोच है हमारी अपनी, अपनें निजी विचारों से , 

नहीं चिपकना मात्र किसी एक व्यक्ति या एक समूह से,
साथ ही साथ नही रखना मोह, किसी पद या किसी स्थान विशेष से |

सारा देश हमारा है, हर इंसा हमारा अपना है 

तो क्यों विचार आये , नाता पाले मात्र एक से ?
चाहे हम मिले अपनें जवाहर, इंदिरा, लाल, राजीव, नरसिंह या मनमोहन से 
अथवा मिले 
सादर श्यामा, दिना, अटल, अडवाणी, नरेन्द्र या केशव, माधव, देव, या मोहन से 
हम पास रहें बाला-उद्धव, मुलायम,लालू, माया, ममता अम्मा व अन्यों के स्नेह से 
अथवा कूदें, नाचे, दौड़े-भागे संत तुका,कबीर, अण्णा या श्री श्री कें आगे-पीछे से 
क्या फर्क पडता है ?


ज़रा सोंचें, 
क्या फर्क पडता है हमारे अपनें इस व्यवहार से ? 
जब हम सबकी अच्छाई पर ही प्रेम करें अपनें दिल से,
अच्छाई का साथ और बुराई का विरोध करें अपनें गांधीवादी तरीके से, 
फिर क्यों हम रोएँ या हँसे, अपनें ही इन सब प्यारें लोगों की कृति से ? 
हम तो जियें मात्र देश और मानव के सुख व सुरक्षा के लिए ईश कृपा से 
इसीलिए हम निष्पाप कृति, विचार, और लेखन करें, अपनें निजी विचारों से, तन से, मन से, धन से  |
जयहिंद | जयभारत. | वंदे मातरम |

.....  चंद्रकांत वाजपेयी.
जेष्ठ नागरिक, औरंगाबाद.महाराष्ट्र 
ई-मेल :   chandrakantvjp@gmail.com

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