Saturday 22 December 2012
Friday 21 December 2012
-------- व्यभिचार विरोध ---------
20 / 12 / 2012.
दिनांक २२ / १२ / २०१२ को सायं ०५:०० बजे निराला बाज़ार औरंगाबाद में " औरंगाबाद डेवलपमेंट फोरम " की और से आयोजित बलात्कार विरोध प्रदर्शन कार्यक्रम का जेष्ठ नागरिक पूरी तरह समर्थन करते हुवे सभी युवाओं से आग्रह करते है की आप निर्भीक होकर उक्त दिनांक और समय पर निराला बाज़ार औ.बाद में उपस्थित होकर देश के व्यभिचारियों के विरुद्ध लढाई लढे, अपनी माता-बहनों को ढांढस बंधाएं और सच्चे इंसान बनकर इंसानियत का फ़र्ज़ निभाएं ।
-------- व्यभिचार विरोध ---------
हम कासलीवाल-विश्व एवं तिरुपति-एक्ज़ीक्यूटिव' उल्कानगरी, के जेष्ठ नागरिक एवं समस्त व्यभिचार विरोधी नागरिक " दिल्ली सहित देशभर में होनें वाले ' सभी बलात्कार प्रकरणों ' की तीव्र निंदा और विरोध को इस "गोल काले दाग" के प्रतिक के रूप में अत्यंत दु:ख और वेदना के साथ प्रस्तुत कर रहे है। भारत में हर बलात्कारी के शरीर का एक अंग काटनें की सजा के साथ तीन माह के अन्दर फांसी की सजा निर्धारित हो यह मांग करते है।
दिनांक २२ / १२ / २०१२ को सायं ०५:०० बजे निराला बाज़ार औरंगाबाद में " औरंगाबाद डेवलपमेंट फोरम " की और से आयोजित बलात्कार विरोध प्रदर्शन कार्यक्रम का जेष्ठ नागरिक पूरी तरह समर्थन करते हुवे सभी युवाओं से आग्रह करते है की आप निर्भीक होकर उक्त दिनांक और समय पर निराला बाज़ार औ.बाद में उपस्थित होकर देश के व्यभिचारियों के विरुद्ध लढाई लढे, अपनी माता-बहनों को ढांढस बंधाएं और सच्चे इंसान बनकर इंसानियत का फ़र्ज़ निभाएं ।
सन्देश प्रेषक :-- समस्त जेष्ठ नागरिक कासलीवाल-विश्व व तिरुपतिएक्ज़िक्युतिव्ह एवं व्यभिचार विरोधी नागरिक ।
(१) के. एस भाले. (२) गणेशीलाल बाहेती (३) चंद्रकांत वाजपेयी.
(४) अशोकचंद छाजेड (५) सुभाष देशमुख (६) उदय कुमार सोनोने
(७) विनायक जोशी (८) सुधाकर डुमणे (९) गजेन्द्र धकाते
एवं (१०)मनीषा चौधरी.
Friday 14 December 2012
आरटीआय विधेयक कलम ४ के सफल संचालन हेतू .....
आरटीआय विधेयक कलम ४ के सफल संचालन हेतू |
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11:30 AM (5 minutes ago)
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१५ - १२ २०१२.
" मध्यप्रदेश के आदरणीय शासक एवं प्रशासक, "
आपके द्वारा जनहित मे किये गये कार्यो के लिये
" हार्दिक धन्यवाद तथा अभिनंदन."
आरटीआय विधेयक कलम ४ के सफल संचालन हेतू
यह विनम्र आग्रह है कि
कृपया मुख्यमंत्री जी इस विषय में ट्विट किये गये निम्न संदेशानुसार तत्काल कार्यवाही करने की कृपा करे ।
यदि इस निवेदन पर योग्य कार्यवाही में कोई बाधा हो तो उक्त बाधा की जानकारी से अवगत करावे, आभारी रहूंगा ।
मुख्यमंत्रीजी को भेजा गया ट्विट निम्नानुसार है :--
" @ShivrajSinghcm आरटीआय कलम ४ अनुसार म.प्र.के हरेक सरकारी कार्यालय की कागजी कैशबुक के लिखे पृष्ठ को हर दिन सार्वजनिक करे. यह बंधनात्मक हो | "
स्मरणीय :-- (१) आरटीआय विधेयक कलम ४ अंतर्गत " सभी शासकीय सुचनाओ / --व्यवस्थाओ की जानकारी स्वयं होकर शासन - प्रशासन ने आम जनता को बिना किसी मांग के आधार पर सार्वजनिक करना है ।"
(२) जब खर्च का ब्योरा दिया जाना आरटीआय कानून के अंतर्गत न्यायोचित है और मांग के आधार पर यह दिया जाता है फिर आरटीआय के कलम ४ के अंतर्गत कैशबुक में उल्लेखित खर्च /विवरण को प्रतिदिन सार्वजनिक करना गलत क्यो ?और कैसे रोका जा सकता है ?
धन्यवाद सहित,
भवदीय,
चंद्रकांत वाजपेयी { जेष्ठ नागरिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता } औरंगाबाद.
[ पूर्व निवासी मध्यप्रदेश ]
ईमेलं :-- chandrakantvjp@gmail.com +91 9730500506 .
Monday 10 December 2012
क्या भारत में संवैधानिक व्यवस्था की अवहेलना हो रही है ? विपक्ष का ध्यान क्यो नही ?
१० / १२ / २०१२.
क्या भारत में संवैधानिक व्यवस्था की अवहेलना हो रही है ?
विपक्ष का ध्यान क्यो नही ?
भारत के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण और विचारणीय विषय है कि :---
( 1 ) भारत के कोयला मंत्री श्री प्रकाश जायसवाल (कैबिनेटमंत्री) स्वयं कह चुके है कि आज संसद नैतिकता से काम नहीं करती है
और ना ही नैतिकता से संसद चल सकती है ।
( 2 ) क्यों एफडीआय के मसले पर कुछ दलों के सांसद (बसपा एवं सपा के सांसद) संसद के अन्दर अपनें संसदीय क्षेत्र के नागरिकों की राय संवैधानिक व्यवस्थानुसार रखते है और बाद में वोटिंग के समय जनता की राय के विरुद्ध वोटिंग करते है या राय के विरुद्ध संसद से पलायन करते है ? क्या यह सांसदो की असंवैधानिक कृति नही है ?
( ३ ) क्या यह परिस्थिति संवैधानिक व्यवस्था का हनन नहीं है ?
( ४ ) क्या उपरोक्त स्थिति में संसद में बननें वाले क़ानून या स्वीकृत होनें वाले सभी विधेयक अनैतिक तथा अवैध नहीं है ?
( ५ ) क्या इस तरह से संचलित संसद संविधान का उल्लंघन नहीं है ?
( ६ ) क्या ऐसी संसद को तुरंत बर्खास्त करके नैतिकता से
ओतप्रोत संसद कि स्थापना करना आवश्यक नहीं है ?
देश के प्रबुद्ध नागरिक एवं राष्ट्रहित चिन्तक राजनेता उपरोक्त बिन्दुओ पर विचार क्यों नहीं कर रहे है ?
क्या उपरोक्त बिंदु गलत है ?
चंद्रकांत वाजपेयी, (जेष्ठ नागरिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता, औ.बाद )
chandrakantvjp@gmail.com +91 9730500506.
Wednesday 5 December 2012
कौंग्रेस के लिए एक गंभीर सवाल, सत्ता में कैसे टिके रहें ?
कौंग्रेस के लिए एक गंभीर सवाल
----------- सत्ता में कैसे टिके रहें ? ------------
इसमें कोई शंका नहीं कि फिरंगियों के कब्जे से भारत को मुक्ति दिलानें और आजाद भारत बनाये रखनें में कौंग्रेस की बड़ी महत्वपूर्ण व अभिनंदनीय भूमिका रही है ।
यह निर्विवाद सत्य है कि आजाद भारत के ६५ वर्षों के कार्यकाल में लगभग ५० वर्षों से ज्यादा समय तक कौंग्रेस पार्टी की ही सरकारे रही है तथा कौन्ग्रेस पार्टी के एक ही परिवार के लोगो नें अधिकतम समय तक सरकार का नेतृत्व किया है । अनेकानेक वर्षो तक कौन्ग्रेस का एकछत्र राज्य रहने के कारण इस पार्टी नें स्वयं सवाल निर्मित किया है कि " क्या कारण है कि "सोनें की चिड़िया कहालानेवाला यह महान देश जो आजादी के समय भी अत्याधिक वैभवपूर्ण था, आज इतना कंगाल और असमर्थ क्यों हो गया है कि उसके पास खाने की सभी चीजे पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होनें के बावजूद वह विदेशियों (बहुराष्ट्रीय कंपनियों) के हाथों से ही खाने-पीनें की चीजे प्राप्त करनें के लिए अर्थात एफडीआय के माध्यम से उपभोग में लेने लिए विवश हुआ है ?
क्या कौंग्रेस पार्टी देश के गुलामगिरी के इतिहास को पुन: दोहरानें और एकबार फिर से गुलामी से स्वतंत्रता प्राप्ति के शौर्य भरे चरित्र को प्रस्तुत करने के लिये खडी है ? अथवा अपनें ५० वर्षों के शासनकाल में की गयी लूटपाट और गुपचुप विदेशों में रक्खे काले पैसे को एफडीआय के माध्यम से सफ़ेद करते हुवे अपनें पापों को छिपाना चाहती है ? क्या है सच ?
अब कौंग्रेस को इन सवालों का जवाब देना होगा,
अन्यथा सत्ता विमुख होना होगा।
सपा - बसपा गंभीर होती तो हर बार राष्ट्रहित के मुद्दों पर वोटिंग के समय संसद से पलायन क्यों करती ?
06 / 12 / 2012..
कितनी दु:खद और हास्यास्पद स्थिति है कि मुलायम सिंह ( सपा ) और मायावती
( बसपा ) जो देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश के बड़े राजनीतिक दलों के प्रमुख है, या तो
अपराधिक मामलों में उलझे होनें के कारण अत्यंत डरे -सहमें है अथवा पद-सत्ता के लिए बिकाऊ हो
चुके है। देखिये और हमेशा याद रखिये कि " मुलायम और मायावती दोनों ने केवल वोटों के खातिर
संसद में एफडीआय के विरुद्ध जोरदार वकालत तो की परन्तु वोटिंग के दौरान पिछले इतिहास का
अनुसरण करते हुवे ये अपनी पार्टी के सभी सांसदों को साथ लेकर पलायन कर गए तथा अप्रत्यक्ष
रूप से सरकार व एफडीआय के समर्थन में झुक गए।
और बगल में छुरी " की कहावत को चरितार्थ कर रहे है। ऐसे लोगों पर भरोसा करनें के कारण ही
शायद उ.प्र. के लोगों को रोटी रोजी के लिए आज भी दुसरे राज्यों में जाना पड़ता है और केवल दु:ख
- कष्ट, मारपीट भोगनें के साथ इन गरीब नागरिकों को अपमान के घूंट को भी सहन करना पड़ता
है। सोचिये मुलायम-मायावती नें जात-पात, उंच-नीच का भेद बढ़ाकर आपस में वर्ग संघर्ष बढानें
औरअपनी खुद की सत्ता की रोटी सेकनें के अलावा और क्या किया है ? यदि इन दोनों राजनेताओं के
द्वारा अन्य राज्यों की तरह उत्तरप्रदेश का कृषि क्षेत्र में या आर्थिक व औद्योगिक क्षेत्र में विकास किया
होता तो उ.प्र. के नागरिक रोजगार के लिए अन्य राज्यों में मारे-मारे क्यों फिरते ? साफ़ है सपा
और बसपा पर भरोसा करना यानी अपने पैरो पर कुल्हाड़ी मारना है।
अब आप खुद इन डरपोक या पद-सत्ता के लोभी, बिकाऊ व देशहित से बे खबर रहनें वाले सपा -
बसपा को वोट देकर अपनें पैरों पर कुल्हाड़ी की मार खानें को तैयार है ?
सपा - बसपा देशहित के प्रति गंभीर नहीं
यदि सपा - बसपा गंभीर होती तो हर बार
राष्ट्रहित के मुद्दों पर वोटिंग के समय
संसद से पलायन क्यों करती ?
---------- क्या ये सत्तादल के भाड़े के टट्टू तो नहीं है ? ----------
कितनी दु:खद और हास्यास्पद स्थिति है कि मुलायम सिंह ( सपा ) और मायावती
( बसपा ) जो देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश के बड़े राजनीतिक दलों के प्रमुख है, या तो
अपराधिक मामलों में उलझे होनें के कारण अत्यंत डरे -सहमें है अथवा पद-सत्ता के लिए बिकाऊ हो
चुके है। देखिये और हमेशा याद रखिये कि " मुलायम और मायावती दोनों ने केवल वोटों के खातिर
संसद में एफडीआय के विरुद्ध जोरदार वकालत तो की परन्तु वोटिंग के दौरान पिछले इतिहास का
अनुसरण करते हुवे ये अपनी पार्टी के सभी सांसदों को साथ लेकर पलायन कर गए तथा अप्रत्यक्ष
रूप से सरकार व एफडीआय के समर्थन में झुक गए।
स्पष्ट है की ये लोग देश के प्रति ना तो गंभीर है और नाही विवेकशील। ये लोग " मुंह में राम
और बगल में छुरी " की कहावत को चरितार्थ कर रहे है। ऐसे लोगों पर भरोसा करनें के कारण ही
शायद उ.प्र. के लोगों को रोटी रोजी के लिए आज भी दुसरे राज्यों में जाना पड़ता है और केवल दु:ख
- कष्ट, मारपीट भोगनें के साथ इन गरीब नागरिकों को अपमान के घूंट को भी सहन करना पड़ता
है। सोचिये मुलायम-मायावती नें जात-पात, उंच-नीच का भेद बढ़ाकर आपस में वर्ग संघर्ष बढानें
औरअपनी खुद की सत्ता की रोटी सेकनें के अलावा और क्या किया है ? यदि इन दोनों राजनेताओं के
द्वारा अन्य राज्यों की तरह उत्तरप्रदेश का कृषि क्षेत्र में या आर्थिक व औद्योगिक क्षेत्र में विकास किया
होता तो उ.प्र. के नागरिक रोजगार के लिए अन्य राज्यों में मारे-मारे क्यों फिरते ? साफ़ है सपा
और बसपा पर भरोसा करना यानी अपने पैरो पर कुल्हाड़ी मारना है।
बसपा को वोट देकर अपनें पैरों पर कुल्हाड़ी की मार खानें को तैयार है ?
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