सुबह - सुबह पोता बोला
दादा जी देखो,
" अपने प्यारे भारत देश के ये दो सरदार "
एक सरदार जिनके राज में
भारतवासी और देश के
सैनिको का सर उंचा होता था
हमारा कलेजा गर्व से फूला न समाता था
एक सरदार जिनके राज में
भारतवासी और देश के
सैनिको का सर उंचा होता
दुश्मन हाथ जोडता फिरता और भारतीयो को लोहा मानता
देशवासियो का कलेजा गर्व से फूला न समाता
मेरे भारत का इतिहास गौरवशाली कहलाता
मेरे भारत का इतिहास गौरवशाली कहलाता ।
लेकिन
ये दुसरे सरदार जिनके राज में
भारतवासी और देश का सिर शर्म से झुक जाता
भारत के सैनिक का सर काटा जाता, और
कटा सिर दुश्मन उठाकर ले जाता
भारत कि जनता आग बाबुला हो जाती
पर ६ दिन तक सरदार की ओर से कठोरता न दिखती
सैनिक की माता और पत्नी अपना सर पिटती
भूख हडताल करनें को मजबूर हो जाती
आसूओं की बाढ न थमती, दु:खी मां और वीर शहिद की पत्नी
कटा सिर लाकर देने को वह कहती ।
परंतु सरदार के कलेजे का खून क्यो ना खौलता ?
एक के बदले दस सर लाकर देने का वचन क्यो ना मिल पाता ?
जब विरोधी राजनेता दु:खी परिवार की मांग का समर्थन करता
तब कही भारत के इस नये कालिमा भरे इतिहास को गोरा करने का
सफल प्रयास होता देखने को मिलता ।
आखिर ' देर आये दुरुस्त आये '
बस इतना ही, हिंदुस्तान का आम आदमी कहता
वह भारत मां की रक्षा हेतू, सरदार का साथ निभाता
मेरा पोता सोचता कि "दूसरा सरदार हमेशा मजबूर क्यो हो जाता?" बिना किसी के कहे, वह कोई पहल क्यो न करता ?
देश के हिफाजत या विकास का समय पर निर्णय क्यो न होता ?
' दुसरे सरदार की गतिविधियो ' से
इतिहासकार "काला इतिहास" लिखने को मजबूर हो जाता,
और बेहद दु:ख है कि दुसरे सरदार का इतिहास
कालिमा भरा लिखा जाता, कलेजा फटा -फटा सा रह जाता ।
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