Sunday, 10 February 2013

मेरे देश की इज्ज़त पर जब अफज़ल आँख उठाता है - आलोक शर्मा,ग्वालियर


09 / 02 / 2013.

मेरे देश की इज्ज़त पर जब अफज़ल आँख उठाता है 

-------आलोक शर्मा,ग्वालियर

मेरे देश की इज्ज़त पर जब अफज़ल आँख उठाता है 
इस माटी का छोटा कंकण तब ब्रह्मास्त्र बन जाता है 



जब जले चरारे शरीफ कहीं तो कौन चुप रह पायेगा 

ऐसे में तो कोई कायर ही चैन की नींद सो पायेगा 

किसी अक्षर धाम पर जब आतंकी हमला हो जाता है

इस माटी का छोटा कंकण तब ब्रह्मास्त्र बन जाता है .




किसी गौधरा से जब भी आग की लपटें उठतीं हैं 

किसी आतंकी गोली से सैनिक की सांसे रूकती हैं 


अपनी बेटी बचाने को जब ही देश ही बेचा जाता है


इस माटी का छोटा कंकण तब ब्रह्मास्त्र बन जाता है .


दंगों की आग में जब लूट ही लोगो का ईमान बने 


प्रश्न पूछने की खातिर जन प्रतिनिधि बेईमान बने 


किसी निठारी में निष्ठुर जब जाल अपना फैलाता है 


इस माटी का छोटा कंकण तब ब्रह्मास्त्र बन जाता है 


भाषा की इन दीवारों को जब तक ना तोडा जायेगा

अपने झूठे स्वार्थों को भी जब तक ना छोड़ा जायेगा 


जब सत्य का पहन आवरण असत्य सिर उठाता है .


इस माटी का छोटा कंकण तब ब्रह्मास्त्र बन जाता है।

मेरे देश की इज्ज़त पर जब 
अफज़ल आँख उठाता है 

इस माटी का छोटा कंकण तब ब्रह्मास्त्र बन जाता है 



-------आलोक शर्मा,ग्वालियर

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