निष्पक्ष व गैरराजनीतिक रहकर
" देशहित में निम्न प्रश्नों पर विचार करना जरुरी."
क्या बुद्धिजीवी और देशहित चिन्तक ऐसा सोचते या मानते है कि आजादी के समय निश्चितही " आरक्षण " की जरूरत थी, लेकिन शायद देश की " राजनीति " ने आरक्षित वर्ग के लोगों को संविधान में की गयी आरक्षण व्यवस्था के साथ नियोजित समय में आरक्षण के लाभ देनें की गति कमजोर रखवाई एवं आरक्षण की सीमावधी बढाते हुए आरक्षण को सत्ता पानें का एक राजकीय हथियार बना लिया ? ? ?
विगत कुछ वर्षों से संविधान में अनारक्षित वर्ग के नए नए समूह आरक्षण सुविधा का लाभ पानें के लिए शांतिपूर्ण या अशान्तिपूर्ण प्रदर्शन करके नई नई व्यवस्थाए स्थापित करानें के दबाव पैदा करते दिख रहे है, क्या इससे देश प्रगत होगा ? ? ?
क्या संविधान में अनारक्षित वर्ग के विशेष समूहों द्वारा आरक्षण लाभ हेतु आएदिन हों रहे प्रदर्शनों के दबावों में उक्त अनेक समूह विशेष को आरक्षण मिलते रहने से सामाजिक समरसता पर विपरीत परिणाम नहीं पडता है ???
जिन अनारक्षित समूहों द्वारा देश की शान्ति एवं समृद्धि का विचार करके कोई प्रदर्शन नहीं किया जाता है, ऐसे समूहों के कम आय प्राप्त करनेंवालों या गरीबो अथवा एकदम अति गरीबों की संख्या का ग्राफ क्यों बढता है ? ? क्या इसे रोकनें की आवश्यकता नहीं ? ? यदि आज नहीं तो निकट भविष्य में इन्हें आरक्षण देना क्या जरुरी या मजबूरी नहीं होगा ? ?
आखिर कब तक चलेगा यह आरक्षण का खेल ? ? ?.
" अतएव सरकार का लक्ष्य सफल समयबद्ध योजना के साथ आरक्षण के बजाय अति तीव्र गति से देश की प्रगति करते हुए प्रत्येक भारतीय का हर क्षेत्र में " संरक्षण करना " अधिक न्यायसंगत होगा. "
.... चंद्रकांत वाजपेयी.
जेष्ठ नागरिक, औरंगाबाद.
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