Sunday, 26 February 2012


२६ / ०२ / २०१२.
    ' म.प्र. सरकार का हॉकी को प्रशंसनीय प्रोत्साहन '
            क्या बजट  सत्र  में  यह सरकार करेगी   
                दानराशि के उपयोग का रक्षण ? 

" बधाई. "  भारतीय हॉकी खिलाडियोने फ़्रांस को ८-१ से हराया और ओलंपिक हॉकी में प्रवेश के द्वार खोल लिए । इस आनंदमय समाचार के मिलते ही बिना विलम्ब किये मध्य प्रदेश सरकार नें प्रत्येक खिलाड़ी को एक-एक लाख रुपये देनें की घोषणा करके सिद्ध किया है की म.प्र. की  ' भा.ज.पा. सरकार ' हॉकी खेल के प्रोत्साहन के लिए  हर स्तर पर गंभीरता से कार्यवाही करती है तथा खिलाड़ीयों की  है.
       माननीय मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान जी,  इस प्रोत्साहन वास्तव में हितैषीके लिए  म.प्र. के पूर्व नागरिक और एक जेष्ठ नागरिक की ओर से हार्दिक धन्यवाद तथा आभार।    
      मान्यवर, यह स्मरण कराते हुवे अपेक्षा करता हूँ कि
 " प्रदेश के नागरिकों द्वारा दिए जानें वाले सभी प्रकार के दान राशियों के १००% भ्रष्टाचार मुक्त उपयोग और वार्ड - ग्राम स्तर के विकास में इस दान राशि के ३०% भाग की सुनिश्चित उपयोगिता वाले "जनधन क्षेत्र-समृद्धि योजना"
को आप बजट सत्र में प्रस्तुत करके अनुग्रहित करेंगे. "
         म.प्र. समृद्धि की इस योजना के क्रियान्वयन हेतु मै आपका सदैव आभारी रहूंगा ।
...... चंद्रकांत वाजपेयी. chandrakantvjp@gmail.

Thursday, 23 February 2012

२२ /०२ / २०१२.   मेरे प्रिय सभी शुभचिंतको,


"जन्म दिन पर व्यक्तिगत आभार और विनम्रनिवेदन" 






आपकी नज़रों नें समझा, बधाई देनें काबिल मुझे, कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ, जो स्नेह दिया आपनें मुझे. 


ईश प्रार्थना इतनी की,भ्रष्टाचारमुक्त देश दिखे तुझे,जन्मदिन पर संकल्प इतना, देश ऐसा बना दिखाऊं तुझे. 





सुसंस्कार,अनुशासन व सुशान्ति का था वह आन्दोलन, जन लोकपाल के लिए फिर करेंगे अहिंसा से जनांदोलन 


शान्ति-समृद्धि के लिए"विज्ञान-प्रद्योगिकी"का करें उपयोग   भ्रष्टाचारमुक्त भारत के लिए युवां साथी करें इसका प्रयोग, 


रोजगार बढानें भ्रष्टाचार रोकने इसका प्रयोग करना है तुझे,फिर पीछे क्यों रहना, मेरे प्यारे मित्र आज बता दे यह मुझे,


धन्यवाद देता और प्रणाम करता जन्म दिन पर तुझे,  ईश प्रार्थना इतनी की, भ्रष्टाचारमुक्त देश दिखे तुझे


जन्मदिन पर संकल्प इतना, देश ऐसा बना दिखाऊं तुझे. 


निवेदक : चंद्रकांत वाजपेयी, एल-१/५ , कासलीवाल विश्व, 


उल्कानगरी, गारखेडा, औरंगाबाद. ४३१००५.मोबाइल क्र. 


+९१९७३०५००५०६.ई - मेल : chandrakantvjp@gmail.com

Monday, 20 February 2012


२१ / ०२ / २०१२. 
कृपया सोचें 
" नेता कौन ?  कौन - किसकी बात मानें ? "   

 अपनें को नेता कहनें वाला नेता के योग्य है या नहीं ? 

क्या नेता को देशभक्त होना चाहिए ?

क्या वह नेता होता है जो देश के क़ानून तोड़े ?

क्या उसकी बातें मानकर वोट देनें चाहिए, जो नागरिक सुरक्षा के लिए बनें धारा १४४ के क़ानून तोड़े और जिस पर कोर्ट में मुकदमे और कुछ  ऍफ़आयआर दर्ज हो ?

क्या क़ानून तोड़नें वाला देशभक्त होता है ?

एकही उत्तर है की आप स्वयं नेता है. आप हमारे भी नेता है, बशर्ते आप देश के कानून का उल्लंघन नहीं करते, आपके विरुद्ध कोई अपराधिक मुकदमा / ऍफ़आयआर दर्ज नहीं है और भविष्य में भी यही स्थिति बनाकर रखेंगे, आप सभी सार्वजनिक हित के कार्यों में खुले दिल से सहकार्य करते हैं, आप स्नातक तक पढाई कर चुके है, आपकी आयु ६०वर्ष से ज्यादा नही है, आप किसी धर्म, जाती, भाषा या प्रांत के प्रति विशेष आसक्त न होकर समभाव रखते है. इतना ही नहीं आपअपने स्वयं के और खून के रिश्ते दारो के आर्थिक आय-व्यय को हर चार माह में वेब साईट पर सार्वजनिक करनें तथा कोई आर्थिक, भावनिक अथवा शारीरिक अपराध घटित नहीं होनें देनें के लिए वैधानिक तरीके से वचन बद्ध है तो, आगामी चुनाव में आप हमारे उम्मीदवार ही नहीं जन प्रतिनिधि होंगे. देश को आपकी ही जरूरत है. आप देश के लिए जियेंगे ?
आपकी जय हो.  जय हिंद.  जय भारत.



२० / ०२ / २०१२.   देश को मलाई चाहिए ?                                                    
                            दूध को औटाना पडेगा।
                        .......... चंद्रकांत वाजपेयी.

देश की परिस्थितियों और अनुभवों को ध्यान में रखकर आगामी आम चुनावों में विभिन्न बिन्दुओं के साथ साथ  निम्नांकित 'दो महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर'  " चुनाव सुधार " आवश्यक प्रतीत होते है.


 " चुनाव सुधार प्रक्रिया विषय पर विचार करनें और निर्णय लेकर उसे व्यवहारिक प्रक्रिया से जोडनें के लिए अधिकृत भारत सरकार के सभी अधिकारी /  राष्ट्रिय स्तर के जनप्रतिनिधि और सभी राजनितिक दलों से यह अपेक्षा है कि देश हित में निम्नांकित दोनों बिन्दुओं पर क्रियान्वयन हो." 


(१) प्रधानमंत्रीपद किसी पार्टी, परिवार या व्यक्ति के प्रति वफादार व जिम्मेदार न होकर सीधे देश के प्रति वफादार व जवाबदेह हो। इसके लिए प्रधनमंत्री का सीधे जनता से चुनाव होना चाहिए।


(२) देश में अनिवार्य मतदान का कानून बनाना चाहिए, विश्व के 30 से भी ज्यादा देशों में अनिवार्य मतदान का कानून है और इससे वहाँ पर स्वस्थ्य लोकतन्त्र है। मतदान करना हमारा मात्र एक अधिकार ही नहीं अपितु लोकतांत्रिक कर्त्तव्य व धर्म है। मतदान न करने वाले नागरिक को राष्ट्र के नागरिक होने के नाम पर प्राप्त होनें  वाली सुविधओं से वंचित या उनमें कटौती करने का प्रावधन होना चाहिए।


" राष्ट्रहित सर्वोपरि " अत: उपरोक्त कार्यवाही अपेक्षित है।


प्रेषक: चंद्रकांत वाजपेयी, एल-१/५ , कासलीवाल विश्व, उल्कानगरी, गारखेडा, औरंगाबाद. ४३१००५.मोबाइल क्र. +९१९७३०५००५०६.ई - मेल : chandrakantvjp@gmail.com

Sunday, 19 February 2012





राष्ट्रीय दहशतवादविरोधी केंद्र (एनसीटीसी) स्थापनेवरून बिगरकाँग्रेसी राज्यांच्या टीकेला केंद्रीय गृहमंत्री पी. 


चिदंबरम यांनी आज सडेतोड उत्तर दिले. देशाची सुरक्षा ही केंद्र सरकार व राज्य सरकारांची समान 


जबाबदारी आहे, असे ते म्हणाले.






                आता संपवा कहाणी  ' लांडगा आला रे आला '




   " शासनकर्त्यांची स्थिति लहानपणी ऐकलेली कहाणी  ' लांडगा आला रे आला '  या प्रमाणें झाली आहे. "    


हे  दु:खद पण कटु सत्य आहे की शासन करणार्या नेतृत्वावर केवळ विरोधी पक्षच नव्हे तर देशहित चिंतन 


कारणारया सामान्य नागरिकांचा विश्वास देखिल पार उडालाआहे. केंद्र आणि राज्यशासन कर्त्यांचे प्रत्येक 


शब्द वा निर्णय केवळ राजकारणां साठीच आहेत असे भ्रम किंवा यथार्थ आज विश्वास स्वरूपात उमटले 


आहेत. या केविलवाण्या स्थितीची प्रचिती घेण्यास आता सर्व शासक भाग पडले आहे. 




" जो पर्यंत सत्ता नव्हे, समूह नव्हे, व्यक्ति नव्हे तर फ़क्त आणि फ़क्त माझा देश भारत, याचे परमवैभव या 


साठी प्रत्येक केंद्र शासक व्यक्तिचे तसेच त्यांच्या सर्व कार्यकर्त्यांचे कृतीशील जीवन सातत्यानें आढळणार 


नाही तो पर्यंत शासनाची ' लांडगा आला रे आला ' ही कहाणी संपणार नाही. " 




लोकांचा विचार कायम झाला आहे की केन्द्रीय शासक आतंकवाद (दहशतवाद) कायमचा मिटविण्या साठी 


योग्य कायदा बनविण्यास दृढ़ नाही. यात देखिल त्यांचा राजकारणाचा खेळ खेळला जातो. जनतेचा कडू 


अनुभव आहे की :-


" शासक दळाच्या शासन करत्यांनी कांही वर्षा पूर्वी अतिरेकीनां - दहशतवादाला कायमचा रोखण्याच्या 


निमित्तानें " टाडा " सारखा शिस्तबद्ध कड़क कायदा तयार केला. जनतेनें या स्वागत योग्य निर्णयाचे कौतुक 


केले. पण ' टाडा ' मध्ये सर्वात जास्त हिंदू - सिक्खानां 10 वर्षा साठी जामिन न देता तुरुंगात डाम्बुन ठेवले 


गेले." त्या वेळी या शासनकर्त्या दळास " टाडा " एक योग्य कायदा आहे असे वाटत असे आणि म्हणून 


त्याचा वापर मुबलकतेनें करण्याचे सांगितले जात असे.

पुढील काळात दुसऱ्या अनेक प्रांतात या शासक दळाचे अस्तित्व मिटले, तेव्हा याच पक्षाच्या सर्व पुढार्यांनां 


हाच " टाडा " नावाचा कायदा फारच जास्त कड़क वाटायला लागला आणि कदाचित स्वत:चे कार्यकर्ते या 


कायद्याला कधीच बळी पडू नयेत या बाबीचा विचार करून स्वत: जवळ असणार्या खासदार संख्येचा 


(बहुमाताचा ) पुरेपुर उपयोग करून या कायद्याची सांगता पण केली. 



नंतर केंद्रात विरोधी पक्षाचे शासन अमलात आले तेव्हा त्यांनी "टाडा" पेक्षा नरम असा " पोटा " नावाचा 


कायदा तयार केला. जनतेनें आश्चर्य करावे, हसावे की रडावे हे कांही समजत नाही, कारण 'टाडा' कायदा 


बनविणारया व स्वत:च हा कायदा मिटविणार्या राजकीय दळानें राज्य -सभेत " पोटा " कायद्याचा केवळ 


विरोधच केला नाही तर ' पोटा ' राज्यसभेतून हुडकावून लावला. याच दळानें आपली ढासळलेली प्रतिमा 


दुरुस्त करण्यासाठी दहशदवाद विरोधात आम्ही आहोंत असे दाखविण्याचा अयशस्वी प्रयत्न केला किंवा 


खरोखर देश - रक्षणांसाठी 'पोटा' पेक्षा अनेक पटिनें कड़क "मकोका" नावाचा कायदा स्व नियंत्रित 


असणार्या एका प्रांतात लागू केला हे एक कोडेच आहे, तथापि जनता हे सर्व नाटक आहे असा विचार करते, 


एवढे मात्र नक्की.





आता सांगा वरील अत्यंत कटु अनुभवांचा आस्वाद घेतल्या नंतर सुद्धा " सुरक्षा ही केंद्र व राज्यांची 


जबाबदारी " ही बाब एकदम बरोबर असून गरजेची आहे, तेव्हा ' लांडगा आला रे आला ' ही कहाणी विसरून 


न घाबरता भारतीय जनतेनें आणि विरोधी पक्षानें हक्क भंग असा विचार कां करावा ? देश रक्षणाचा कायदा 


आमलात येत असेल तर त्यांनी शासनास सहकार्य कां करू नये ? भारत देशाचे मालकानों खरे हित चिन्तक 


आहांत तर जरूर सहकार्य करावे, यालाच देश-धर्म म्हणतात. 


............ चंद्रकांत वाजपेयी. जेष्ठ -नागरिक आणि सामाजिक कार्यकर्ता, औरंगाबाद. 


मोबा. +९१९७३०५००५०६.   ई-मेल:-  chandrakantvjp@gmail.com

Friday, 17 February 2012


१८ / ०२ / २०१२.   आखिर क्या है सच्चाई ?
 देश रक्षार्थ 'नेशनल काउंटर टेररिज्म सेंटर' [एनसीटीसी] 
अथवा  पूर्व इतिहास दोहरानें के लिए  " एनसीटीसी

"  किसी सरकार ने एनसीटीसी बनाने को मंजूरी दी, जिस पर शीघ्रत: काम शुरू होना है | कहा जाता है की एनसीटीसी के तहत राज्यों की पुलिस के अलावा रॉ, आईबी, एनआईए और एनएसजी जैसी एजेंसी होंगी. सभी एजेंसियों के लिए आतंकवाद संबंधी जानकारी एनसीटीसी को देना जरूरी होगा| एनसीटीसी के तीन हिस्से होंगे. एक में खुफिया जानकारी इकट्ठा होगी. दूसरा हिस्सा उसका विश्लेषण करेगा और तीसरा हिस्सा ऑपरेशन डिविजन होगा. जिसके पास अनलॉफुल एक्टिविटी प्रेवेंटेशन एक्ट 43 ए के तहत गिरफ्तारी के अधिकार भी होंगे|  अब तक सिर्फ पुलिस और जांच एजेंसियों के पास ही गिरफ्तारी के अधिकार होते थे. हालांकि सरकार की स्पष्टोक्ति है कि एनसीटीसी का मकसद सिर्फ बेहतर तालमेल बिठाना है."


उपरोक्त व्यवस्था कितनी प्रभावी दिखाई देती है न ? ऐसा लगता है शासन सचमुच आतंकवाद समाप्ति के लिए मुस्तैद है।     परन्तु मेरे देशवासियों हम यह ना भूलें की   " सत्ता स्वार्थ में उलझे राजनेताओं के कुछ समूह  पुरे देश को धोखा देनें में माहिर है, दुर्भाग्य से भारत में स्वार्थ पूर्ति के लिए तात्कालिक बनावटी क़ानून बनाकर जनता को मुर्ख बनानें वाले राजनीतिक चालबाजों की कमी नहीं है.    इतिहास बताता है की ऐसी घटनाए इसके पूर्व घट चुकी है.  इस कारण ही सावधान होकर देशहित की चिंता करने वाली जनता को पूर्व के कटु अनुभवों का स्मरण करना पडेगा और उसके बाद ही शासन की मंशा के बारे में निर्णय लेना योग्य होगा."
आइये, हम पूर्व घटित घटनाओं का इतिहास किसी भी शासक और राजनीतिक दल का नाम लिए बगैर स्मरण करें. 
  " भारत का इतिहास बताता है की :--  भारत में एक विशिष्ट राजकीय दल आतंकवाद को रोकने के लिए कोई भी कानून नहीं बनाना चाहता है, इस उल्लेख के पीछे तर्क यह है की जिस दौर में इस विशिष्ट दल को देश में राज करनें का अवसर रहा तब इसने टाडा जैसा कठोर कानून बनाया और टाडा में सबसे ज्यादा हिंदू -सिखों को 10 सालो तक बिना जमानत के जेल भेजा | तब इस दल को टाडा एक सही कानून लगता था | लेकिन जब बाद मे राज्यों से इस दल का सफाया हों गया,  तब इसी दल के सभी नेताओं को यही टाडा कठोर कानून लगने लगा और इसे समाप्त कर दिया गया | यह विशेष उल्लेखनीय है की जब दुसरे राजनीतिक दल / दलों ने अपनें कार्यकाल में टाडा से कई गुना  मुलायम कानून पोटा बनाया तो इसी विशिष्ट दल ने इसे राज्यसभा मे पास नही किया | और खुद एक राज्य मे पोटा से कई गुणा कठोर मकोका कानून लागू किया | 
                    प्रश्न है ऐसा क्यों ?  क्यों केवल और केवल अपने को सत्ता  में बनाए रखनें और राजनीतिक फायदे के लिए राजनीतिक दलों के बीच दुर्भावना को पैदा करने का काम विशिष्ट राजनितिक दल करते है ?  इसी के परिणाम है कि सरकार बदलते ही कानून बदल जाते हैं | देशहित से बड़ा पार्टी हित बनता जा रहा है |  जनता नें  इसे अच्छी तरह समझकर अपनें कदम बढ़ाना चाहियें  और  सरकारों की मंशाओं पर सही निर्णय लेना चाहिए.   

Tuesday, 14 February 2012

१४ / ०२ / २०१२.


" 'नागरिक सुरक्षा' की स्थापना में नागरिकों की भूमिका. "



दिल्ली में एक बार मिला "स्टीकर बम."     इस त्रासदी पर सरकार की स्पष्टोक्ति :- " वे बेहद प्रशिक्षित आतंकवादी थे. "



सामान्य नागरिक का सरकार से प्रश्न :-  आपने क्या कहा ? " बेहद प्रशिक्षित आतंकवादी ? "




फिर क्या हम यह मानें कि " भारत के गृहमंत्री बेहद प्रशिक्षित और कर्तव्यशील नहीं ? 



जब इस प्रकार की घटनाएं बार-बार होंगी, तो इसका मतलब साफ़ है की तत्कालीन गृहमंत्री और उनके गृह -विभाग 




दोनों को ही कार्य के प्रति असमर्थ और अक्षम होना चाहिए. इस स्थिति से यह सिद्ध है कि वे और गृहमंत्रालय कर्तव्यों को सम्हालनें 




तथा घटनाओं का सामना करनें के लिए प्रशिक्षित नहीं है. 






अभी ज्यादा समय भी नहीं गुज़रा है, इतिहास साक्षी है कि " गृहमंत्रालय के मंत्री की अक्षमताओं का यह परिणाम हुआ की एक 




आतंकवादी हमले के कारण उक्त मंत्री को अपना पद गवानां पडा." फिर भी सरकारों नें कोई सीख नहीं ली. हर वर्ष ऐसी अनेक आतंकी 




घटनाएँ घट रही है. आखिर क्यों ? कब तक मासूमों की जान से खिलवाड़ होता रहेगा ? देशभर में क्रमगत हो रही इन आतंकी घटनाओं 




के कारण विभिन्न प्रश्न पूंछें जाना स्वाभाविक है जैसे :--




" देश में ऐसे अप्रशिक्षित गृहमंत्रियों की नियुक्ति क्यों की जाती है ? " क्या देश में अनेक घोटालों के चलते अब "मंत्री नियुक्ति काण्ड" 




नामक कोई नया बैंड बजना ही शेष रहा गया है ? कभी भी नियुक्ति पानें वाला दोषी होता है ? या नियुक्ति देनें वाला ? 



यहाँ नीचे लिखी दो बातों पर हर सच्चे भारतीय को सोचना आवश्यक है :--




{ १ } " देशभर में सरकारी अधिकारियों , कर्मचारीयों या कंपनीयों के कामगारों और इंजीनियरों को प्रशिक्षु-काल की पूर्णता और इसकी 




सफलता के बाद ही पद देनें का बंधन लागू है. इस नियम के पीछे यह धारणा है की किसी भी व्यक्ति के प्रशिक्षु काल के अनुभव से उक्त 




प्रतिष्ठान को उस पद के लिए स्थायी सक्षम व्यक्ति ही प्राप्त होगा, पद के अनुरूप ही कोई भी व्यक्ति नियुक्त हो सकेगा जिससे संस्था को 




केवल लाभ की स्थिति बनेगी, अन्यथा हानि संभव है. यह नियम जनप्रतिनिधित्व करनें वाले पदों के लिएलागू नहीं है,




क्या इसी कारण अक्षम मंत्री नियुक्त होते है ?




{ २ } " ६० वर्ष आयु पूरी हो जानें के बाद सामान्यत: हर व्यक्ति में शारीरिक प्रतिकूलता पायी जाती है. इस नियम और धारणा के 




तहत सभी सरकारी और गैर सरकारी पदों पर नियुक्त व्यक्तियों को सेवा से मुक्त किया जाता है. उनके लिए यह बंधनकारी नियम है 




परन्तु यह नियम जनप्रतिनिधित्व करनें वाले पदों के लिए लागू नहीं है, क्या इसी कारण अक्षम मंत्री नियुक्त होते है ? 






देश को, महामहिम राष्ट्रपति जी से लेकर भारत के प्रत्येक नागरिक से यह अपेक्षा और विश्वास होना चाहिए की " इस देश का प्रत्येक 




लाल भारतमाता का सच्चा सपूत है और " जन गण मन " में विश्वास रखता है, जिस कारण भारत में प्रत्येक व्यक्ति के जान-माल की 




रक्षा, और सर्वोत्तम शासन व्यवस्था के लिए, वह उपरोक्त उल्लेखित दोनों बिन्दुओं [ { १ } तथा { २ } ] पर निष्पक्ष होकर सोचता है, 




विचार करता है और संविधान में प्रदत्त नागरिक अधिकारों का निर्भीकता से उपयोग करके दोनों बिन्दुओं को यथावश्यकता संवैधानिक 




पद्धति अर्थात आम चुनाव द्वारा स्थापित करनें में सक्षम है. 




" नागरिक सुरक्षा " की स्थापनां में देश की यह अपेक्षा पूर्ण हो इस हेतु नागरिक योग्य भूमिका का वहन करें, लेखक की ईश्वर से यही 




प्रार्थना. इति शुभ.


...... चंद्रकांत वाजपेयी [ जेष्ठ नाग. एवं सामा. कार्यकर्ता ]


ई-मेल :- chandrakantvjp@gmail.com         मोबा . :- +91 ९७३०५००५०६ .

Wednesday, 8 February 2012

IT PROVES " WHY TO APPLY " RIGHT TO RE-CALL " & " ANNA' S ORIGINAL JAN LOKAPAL DRAFT IN JNDIA "


08 / 02 / 2012. IT PROVES " WHY TO APPLY " RIGHT TO RE-CALL "     
       & " ANNA' S ORIGINAL JAN LOKAPAL DRAFT IN JNDIA " 
                                                                               ............... CHANDRAKANT VAJPEYI Aurangabad.,
                                                                                                        ( Sr. Ctzn  &  Social Woker. )
प्रिय भारतीय नागरिकों कर्नाटक की घटनां  से  आज मा.अण्णा जी की सच्चाई और अच्छाई दोनों सिद्ध हो रही है | कर्नाटक विधानसभा के हाल को आप जी भरकर देख लीजिये, यहाँ नीचे पढ़नें पर और जी-न्यूज का इस बारे में वीडियो देखकर यह सिद्ध हो रहा है की :-

[१]  लोकतंत्र के मंदिरों के अन्दर ' क्षेत्र के चुने गए जन प्रतिनिधि अनैतिक आचरण प्रस्तुत करते है | '


[२]   " अण्णा के जनलोकपाल बिल में इस बाबत अर्थात संसद के सदनों या विधान सभाओं /  परिषदों   

        के अन्दर या बाहर इनके गैरआचरण पर लिखे गए कानूनी पहल के बिन्दुओं को कैबिनेट और 
        संसद के द्वारा निरस्त करना भी गलत निर्णय था | "

[३]    उपरोक्त अथवा अन्य किसी भी प्रकार के  अमर्यादित और अवैधानिक गैर आचरण से  किसी भी
         समय
 सम्बद्ध हो जानें वाले किसी भी जन प्रतिनिधि को   " लोकतंत्र  के मंदिर से बाहर बुलानें /  
         पदमुक्त करनें का अधिकार भी उस जनता  के हाथ में होना चाहिए जिसनें स्वयं उसे उपरोक्त 
         सम्मानित मंदिर में सेवक के  रूप में चुन कर भेजा  था |   अर्थात  ' अण्णा का राईट टू कॉल '   
         विषयक  कानून लागू करना भी भारत में  आवश्यक है.   यूँ  कहें  मा. अण्णा  की  मांग  बिलकुल  
         सच्ची  और अच्छी  है. 


मै चंद्रकांत वाजपेयी, जेष्ठ नागरिक उक्त बिन्दुओं का पूर्ण समर्थन करके भारत के सच्चे नागरिकों और सभी शासन करनें वालो अथवा शासन करनें की अभिलाषा रखनें वालों से विनम्र आग्रह करता हूँ की अब जब यह सिद्ध हो गया है की मा. अण्णा का जन लोकपाल बिल सच्चा और अच्छा है, तो फिर देर ना करें,  देश हित में इसे आगामी बजट सत्र में  " हुबहूँ "  [अण्णाके जनलोकपाल मसौदेमें बिनाकिसी संशोधन] पारित करें,  मै  सदैव आभारी रहूंगा.  धन्यवाद. 

 शुभकामनाओं सहित,  

-------------  चंद्रकांत वाजपेयी,    मोबा. :   +९१९७३०५००५०६. ई-मेल :  chandrakantvjp@gmail.com.