१८ / ०२ / २०१२. आखिर क्या है सच्चाई ?
देश रक्षार्थ 'नेशनल काउंटर टेररिज्म सेंटर' [एनसीटीसी]
अथवा पूर्व इतिहास दोहरानें के लिए " एनसीटीसी "
" किसी सरकार ने एनसीटीसी बनाने को मंजूरी दी, जिस पर शीघ्रत: काम शुरू होना है | कहा जाता है की एनसीटीसी के तहत राज्यों की पुलिस के अलावा रॉ, आईबी, एनआईए और एनएसजी जैसी एजेंसी होंगी. सभी एजेंसियों के लिए आतंकवाद संबंधी जानकारी एनसीटीसी को देना जरूरी होगा| एनसीटीसी के तीन हिस्से होंगे. एक में खुफिया जानकारी इकट्ठा होगी. दूसरा हिस्सा उसका विश्लेषण करेगा और तीसरा हिस्सा ऑपरेशन डिविजन होगा. जिसके पास अनलॉफुल एक्टिविटी प्रेवेंटेशन एक्ट 43 ए के तहत गिरफ्तारी के अधिकार भी होंगे| अब तक सिर्फ पुलिस और जांच एजेंसियों के पास ही गिरफ्तारी के अधिकार होते थे. हालांकि सरकार की स्पष्टोक्ति है कि एनसीटीसी का मकसद सिर्फ बेहतर तालमेल बिठाना है."
उपरोक्त व्यवस्था कितनी प्रभावी दिखाई देती है न ? ऐसा लगता है शासन सचमुच आतंकवाद समाप्ति के लिए मुस्तैद है। परन्तु मेरे देशवासियों हम यह ना भूलें की " सत्ता स्वार्थ में उलझे राजनेताओं के कुछ समूह पुरे देश को धोखा देनें में माहिर है, दुर्भाग्य से भारत में स्वार्थ पूर्ति के लिए तात्कालिक बनावटी क़ानून बनाकर जनता को मुर्ख बनानें वाले राजनीतिक चालबाजों की कमी नहीं है. इतिहास बताता है की ऐसी घटनाए इसके पूर्व घट चुकी है. इस कारण ही सावधान होकर देशहित की चिंता करने वाली जनता को पूर्व के कटु अनुभवों का स्मरण करना पडेगा और उसके बाद ही शासन की मंशा के बारे में निर्णय लेना योग्य होगा."
आइये, हम पूर्व घटित घटनाओं का इतिहास किसी भी शासक और राजनीतिक दल का नाम लिए बगैर स्मरण करें.
" भारत का इतिहास बताता है की :-- भारत में एक विशिष्ट राजकीय दल आतंकवाद को रोकने के लिए कोई भी कानून नहीं बनाना चाहता है, इस उल्लेख के पीछे तर्क यह है की जिस दौर में इस विशिष्ट दल को देश में राज करनें का अवसर रहा तब इसने टाडा जैसा कठोर कानून बनाया और टाडा में सबसे ज्यादा हिंदू -सिखों को 10 सालो तक बिना जमानत के जेल भेजा | तब इस दल को टाडा एक सही कानून लगता था | लेकिन जब बाद मे राज्यों से इस दल का सफाया हों गया, तब इसी दल के सभी नेताओं को यही टाडा कठोर कानून लगने लगा और इसे समाप्त कर दिया गया | यह विशेष उल्लेखनीय है की जब दुसरे राजनीतिक दल / दलों ने अपनें कार्यकाल में टाडा से कई गुना मुलायम कानून पोटा बनाया तो इसी विशिष्ट दल ने इसे राज्यसभा मे पास नही किया | और खुद एक राज्य मे पोटा से कई गुणा कठोर मकोका कानून लागू किया |
प्रश्न है ऐसा क्यों ? क्यों केवल और केवल अपने को सत्ता में बनाए रखनें और राजनीतिक फायदे के लिए राजनीतिक दलों के बीच दुर्भावना को पैदा करने का काम विशिष्ट राजनितिक दल करते है ? इसी के परिणाम है कि सरकार बदलते ही कानून बदल जाते हैं | देशहित से बड़ा पार्टी हित बनता जा रहा है | जनता नें इसे अच्छी तरह समझकर अपनें कदम बढ़ाना चाहियें और सरकारों की मंशाओं पर सही निर्णय लेना चाहिए.
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