१४ / ०२ / २०१२.
" 'नागरिक सुरक्षा' की स्थापना में नागरिकों की भूमिका. "
दिल्ली में एक बार मिला "स्टीकर बम." इस त्रासदी पर सरकार की स्पष्टोक्ति :- " वे बेहद प्रशिक्षित आतंकवादी थे. "
सामान्य नागरिक का सरकार से प्रश्न :- आपने क्या कहा ? " बेहद प्रशिक्षित आतंकवादी ? "
फिर क्या हम यह मानें कि " भारत के गृहमंत्री बेहद प्रशिक्षित और कर्तव्यशील नहीं ?
जब इस प्रकार की घटनाएं बार-बार होंगी, तो इसका मतलब साफ़ है की तत्कालीन गृहमंत्री और उनके गृह -विभाग
दोनों को ही कार्य के प्रति असमर्थ और अक्षम होना चाहिए. इस स्थिति से यह सिद्ध है कि वे और गृहमंत्रालय कर्तव्यों को सम्हालनें
तथा घटनाओं का सामना करनें के लिए प्रशिक्षित नहीं है.
अभी ज्यादा समय भी नहीं गुज़रा है, इतिहास साक्षी है कि " गृहमंत्रालय के मंत्री की अक्षमताओं का यह परिणाम हुआ की एक
आतंकवादी हमले के कारण उक्त मंत्री को अपना पद गवानां पडा." फिर भी सरकारों नें कोई सीख नहीं ली. हर वर्ष ऐसी अनेक आतंकी
घटनाएँ घट रही है. आखिर क्यों ? कब तक मासूमों की जान से खिलवाड़ होता रहेगा ? देशभर में क्रमगत हो रही इन आतंकी घटनाओं
के कारण विभिन्न प्रश्न पूंछें जाना स्वाभाविक है जैसे :--
" देश में ऐसे अप्रशिक्षित गृहमंत्रियों की नियुक्ति क्यों की जाती है ? " क्या देश में अनेक घोटालों के चलते अब "मंत्री नियुक्ति काण्ड"
नामक कोई नया बैंड बजना ही शेष रहा गया है ? कभी भी नियुक्ति पानें वाला दोषी होता है ? या नियुक्ति देनें वाला ?
यहाँ नीचे लिखी दो बातों पर हर सच्चे भारतीय को सोचना आवश्यक है :--
{ १ } " देशभर में सरकारी अधिकारियों , कर्मचारीयों या कंपनीयों के कामगारों और इंजीनियरों को प्रशिक्षु-काल की पूर्णता और इसकी
सफलता के बाद ही पद देनें का बंधन लागू है. इस नियम के पीछे यह धारणा है की किसी भी व्यक्ति के प्रशिक्षु काल के अनुभव से उक्त
प्रतिष्ठान को उस पद के लिए स्थायी सक्षम व्यक्ति ही प्राप्त होगा, पद के अनुरूप ही कोई भी व्यक्ति नियुक्त हो सकेगा जिससे संस्था को
केवल लाभ की स्थिति बनेगी, अन्यथा हानि संभव है. यह नियम जनप्रतिनिधित्व करनें वाले पदों के लिएलागू नहीं है,
क्या इसी कारण अक्षम मंत्री नियुक्त होते है ?
{ २ } " ६० वर्ष आयु पूरी हो जानें के बाद सामान्यत: हर व्यक्ति में शारीरिक प्रतिकूलता पायी जाती है. इस नियम और धारणा के
तहत सभी सरकारी और गैर सरकारी पदों पर नियुक्त व्यक्तियों को सेवा से मुक्त किया जाता है. उनके लिए यह बंधनकारी नियम है
परन्तु यह नियम जनप्रतिनिधित्व करनें वाले पदों के लिए लागू नहीं है, क्या इसी कारण अक्षम मंत्री नियुक्त होते है ?
देश को, महामहिम राष्ट्रपति जी से लेकर भारत के प्रत्येक नागरिक से यह अपेक्षा और विश्वास होना चाहिए की " इस देश का प्रत्येक
लाल भारतमाता का सच्चा सपूत है और " जन गण मन " में विश्वास रखता है, जिस कारण भारत में प्रत्येक व्यक्ति के जान-माल की
रक्षा, और सर्वोत्तम शासन व्यवस्था के लिए, वह उपरोक्त उल्लेखित दोनों बिन्दुओं [ { १ } तथा { २ } ] पर निष्पक्ष होकर सोचता है,
विचार करता है और संविधान में प्रदत्त नागरिक अधिकारों का निर्भीकता से उपयोग करके दोनों बिन्दुओं को यथावश्यकता संवैधानिक
पद्धति अर्थात आम चुनाव द्वारा स्थापित करनें में सक्षम है.
" नागरिक सुरक्षा " की स्थापनां में देश की यह अपेक्षा पूर्ण हो इस हेतु नागरिक योग्य भूमिका का वहन करें, लेखक की ईश्वर से यही
प्रार्थना. इति शुभ.
...... चंद्रकांत वाजपेयी [ जेष्ठ नाग. एवं सामा. कार्यकर्ता ]
ई-मेल :- chandrakantvjp@gmail.com मोबा . :- +91 ९७३०५००५०६ .
" 'नागरिक सुरक्षा' की स्थापना में नागरिकों की भूमिका. "
दिल्ली में एक बार मिला "स्टीकर बम." इस त्रासदी पर सरकार की स्पष्टोक्ति :- " वे बेहद प्रशिक्षित आतंकवादी थे. "
सामान्य नागरिक का सरकार से प्रश्न :- आपने क्या कहा ? " बेहद प्रशिक्षित आतंकवादी ? "
फिर क्या हम यह मानें कि " भारत के गृहमंत्री बेहद प्रशिक्षित और कर्तव्यशील नहीं ?
जब इस प्रकार की घटनाएं बार-बार होंगी, तो इसका मतलब साफ़ है की तत्कालीन गृहमंत्री और उनके गृह -विभाग
दोनों को ही कार्य के प्रति असमर्थ और अक्षम होना चाहिए. इस स्थिति से यह सिद्ध है कि वे और गृहमंत्रालय कर्तव्यों को सम्हालनें
तथा घटनाओं का सामना करनें के लिए प्रशिक्षित नहीं है.
अभी ज्यादा समय भी नहीं गुज़रा है, इतिहास साक्षी है कि " गृहमंत्रालय के मंत्री की अक्षमताओं का यह परिणाम हुआ की एक
आतंकवादी हमले के कारण उक्त मंत्री को अपना पद गवानां पडा." फिर भी सरकारों नें कोई सीख नहीं ली. हर वर्ष ऐसी अनेक आतंकी
घटनाएँ घट रही है. आखिर क्यों ? कब तक मासूमों की जान से खिलवाड़ होता रहेगा ? देशभर में क्रमगत हो रही इन आतंकी घटनाओं
के कारण विभिन्न प्रश्न पूंछें जाना स्वाभाविक है जैसे :--
" देश में ऐसे अप्रशिक्षित गृहमंत्रियों की नियुक्ति क्यों की जाती है ? " क्या देश में अनेक घोटालों के चलते अब "मंत्री नियुक्ति काण्ड"
नामक कोई नया बैंड बजना ही शेष रहा गया है ? कभी भी नियुक्ति पानें वाला दोषी होता है ? या नियुक्ति देनें वाला ?
यहाँ नीचे लिखी दो बातों पर हर सच्चे भारतीय को सोचना आवश्यक है :--
{ १ } " देशभर में सरकारी अधिकारियों , कर्मचारीयों या कंपनीयों के कामगारों और इंजीनियरों को प्रशिक्षु-काल की पूर्णता और इसकी
सफलता के बाद ही पद देनें का बंधन लागू है. इस नियम के पीछे यह धारणा है की किसी भी व्यक्ति के प्रशिक्षु काल के अनुभव से उक्त
प्रतिष्ठान को उस पद के लिए स्थायी सक्षम व्यक्ति ही प्राप्त होगा, पद के अनुरूप ही कोई भी व्यक्ति नियुक्त हो सकेगा जिससे संस्था को
केवल लाभ की स्थिति बनेगी, अन्यथा हानि संभव है. यह नियम जनप्रतिनिधित्व करनें वाले पदों के लिएलागू नहीं है,
क्या इसी कारण अक्षम मंत्री नियुक्त होते है ?
{ २ } " ६० वर्ष आयु पूरी हो जानें के बाद सामान्यत: हर व्यक्ति में शारीरिक प्रतिकूलता पायी जाती है. इस नियम और धारणा के
तहत सभी सरकारी और गैर सरकारी पदों पर नियुक्त व्यक्तियों को सेवा से मुक्त किया जाता है. उनके लिए यह बंधनकारी नियम है
परन्तु यह नियम जनप्रतिनिधित्व करनें वाले पदों के लिए लागू नहीं है, क्या इसी कारण अक्षम मंत्री नियुक्त होते है ?
देश को, महामहिम राष्ट्रपति जी से लेकर भारत के प्रत्येक नागरिक से यह अपेक्षा और विश्वास होना चाहिए की " इस देश का प्रत्येक
लाल भारतमाता का सच्चा सपूत है और " जन गण मन " में विश्वास रखता है, जिस कारण भारत में प्रत्येक व्यक्ति के जान-माल की
रक्षा, और सर्वोत्तम शासन व्यवस्था के लिए, वह उपरोक्त उल्लेखित दोनों बिन्दुओं [ { १ } तथा { २ } ] पर निष्पक्ष होकर सोचता है,
विचार करता है और संविधान में प्रदत्त नागरिक अधिकारों का निर्भीकता से उपयोग करके दोनों बिन्दुओं को यथावश्यकता संवैधानिक
पद्धति अर्थात आम चुनाव द्वारा स्थापित करनें में सक्षम है.
" नागरिक सुरक्षा " की स्थापनां में देश की यह अपेक्षा पूर्ण हो इस हेतु नागरिक योग्य भूमिका का वहन करें, लेखक की ईश्वर से यही
प्रार्थना. इति शुभ.
...... चंद्रकांत वाजपेयी [ जेष्ठ नाग. एवं सामा. कार्यकर्ता ]
ई-मेल :- chandrakantvjp@gmail.com मोबा . :- +91 ९७३०५००५०६ .
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