26 / 10 / 2012.
शिक्षा तत्वों की पूर्णता के लिये पाठ्य पुस्तको में
निर्भिक चरित्रों का समावेश अधिक आवश्यक .
शैक्षणिक अभ्यासक्रम में साहस और राष्ट्रभक्ति के पाठ शामिल करनें के साथ - साथ विद्यार्थियों में इसके व्यवहार के आधार पर प्रोन्नति अंक दिए जानें की व्यवस्था शालेय शिक्षण विभाग द्वारा किया जाना अत्यंत महत्वपूर्ण और आवश्यक है।
जब तक समाज से भीरुता दूर नहीं होगी और प्रत्येक नागरिक का देश की सुरक्षा तथा उत्थान के लिए मर-मिटनें का चरित्र सर्वत्र दिखाई नहीं देगा तब तक भारतीय शिक्षा अपूर्ण कहलाएगी ।
" अत: देश की सभी राज्य सरकारें अपने शालेय शिक्षा पाठ्यक्रम में बहादुर नीरजा भनोत और अजमल कसाब की गोलियों से विकलांग हुई १० वर्षीय निर्भीक देशभक्त बालिका देविका रोटावन के शौर्य गाथा का समावेश करे ।"
.................................. चंद्रकांत वाजपेयी [ जेष्ठ नागरिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता ]
क्या जानते है कि कौन है,"देविका रोटवान" और "नीरजा भनोत " ?
देविका रोटवान :--
यह मालूम हो कि देविका रोटवान की गवाही के कारण ही आतंकवादी अजमल कसाब को भारत के सुप्रीम कोर्ट तक नें फांसी की सजा सुनाई है तथा कसाब के अति डर के कारण ही भीरु पालकों नें बहादुर देविका के स्कूल वालों पर इतना अधिक दबाव डाला था कि जिस कारण देविका को स्कूल से बाहर किया जाकर उसके पढ़ाई के हक़ को छिननें का असफल प्रयास हुआ था । कुछ देशभक्त युवाओं के कारण उसे स्कूल में पुन: प्रवेश मिला और आज वह न्यू इंग्लिश स्कूल बांद्रा की कक्षा ९ वी में पढ़ाई कर रही है तथा भविष्य में किरण बेदी जैसी पुलिस अफसर बननें के लिए प्रयत्नशील है ।
नीरजा भनोत :--
5 सितम्बर1986 को आधुनिक भारत की एक विरांगना जिसने आतंकियों से लगभग 400 यात्रियों को जान बचाते हुए अपना जीवन बलिदान कर दिया। भारत के कितने नवयुवक और नवयुवतियां उसका नाम जानते है। कैटरिना कैफ, करीना कपूर, प्रियंका चैपड़ा, दीपिका पादुकोड़, विद्याबालन और अब तो सनी लियोन जैसा बनने की होड़ लगाने वाली युवती क्या नीरजा भनोत का नाम जानती है ?
क्या नहीं सुना न ये नाम ? मैं बताता हूँ इस महान विरांगना के बारे में। 7 सितम्बर 1964 को चंड़ीगढ़ के हरीश भनोत जी के यहाँ जब एक बच्ची का जन्म हुआ था तो किसी ने भी नहीं सोचा था कि भारत कासबसे बड़ा नागरिक सम्मान इस बच्ची को मिलेगा। बचपन से ही इस बच्ची को वायुयान में बैठने और आकाश में उड़ने की प्रबल इच्छा थी।नीरजा ने अपनी वो इच्छा एयर लाइन्स पैन एम ज्वाइन करके पूरी की। 16 जनवरी 1986 को नीरजा को आकाश छूने वाली इच्छा को वास्तव में पंख लग गये थे। नीरजा पैन एम एयरलाईन में बतौर एयर होस्टेज का काम करने लगी। 5 सितम्बर 1986 की वो घड़ी आ गयी थी जहाँ नीरजा के जीवन की असली परीक्षा की बारी थी। पैन एम 73 विमान करांची, पाकिस्तान के एयरपोर्ट पर अपने पायलेट का इंतजार कर रहा था। विमान में लगभग 400 यात्री बैठे हुये थे। अचानक 4 आतंकवादियों ने पूरे विमान को गन प्वांइट पर ले लिया। उन्होंने पाकिस्तानी सरकार पर दबाव
बनाया कि वो जल्द में जल्द विमान में पायलट को भेजे । किन्तु पाकिस्तानी सरकार ने मना कर दिया । तब आतंकियोने नीरजा और उसकी सहयोगियों को बुलाया कि वो सभी यात्रियों के पासपोर्ट एकत्रित करे ताकि वो किसी अमेरिकन नागरिक को मारकर पाकिस्तान पर दबाव बना सके। नीरजा ने सभी यात्रियों के पासपोर्ट एकत्रित किये और विमान में बैठे 5 अमेरिकी यात्रियों के पासपोर्ट छुपाकर बाकी सभी आतंकियों को सौंप दिये। उसके बाद आतंकियों ने एक ब्रिटिश को विमान के गेट पर लाकर पाकिस्तानी सरकार को धमकी दी कि यदि पायलट नहीं भेजे तो वह उसको मार देगे। किन्तु नीरजा ने उस आतंकी से बात करके उस ब्रिटिश नागरिक को भी बचा लिया। धीरे-धीरे 16 घंटे बीत गये। पाकिस्तान सरकार और आतंकियों के बीच बात का कोई नतीजा नहीं निकला। अचानक नीरजा को ध्यान आया कि प्लेन में फ्यूल किसी भी समय समाप्त हो सकता है और उसके बाद अंधेरा हो जायेगा। जल्दी उसने अपनी सहपरिचायिकाओं को यात्रियों को खाना बांटने के लिए कहा और साथ ही विमान के आपातकालीन द्वारों के बारे में समझान वाला कार्ड भी देने को कहा। नीरजा को पता लग चुका था कि आतंकवादी सभी यात्रियों को मारने की सोच चुके हैं। उसने सर्वप्रथम खाने के पैकेट आतंकियों को ही दिये क्योंकि उसका सोचना था कि भूख से पेट भरने के बाद शायद वो शांत दिमाग से बात करे। इसी बीच सभी यात्रियों ने आपातकालीन द्वारों की पहचान कर ली। नीरजा ने जैसा सोचा था वही हुआ। प्लेन का फ्यूल समाप्त हो गया और चारो ओर अंधेरा छा गया। नीरजा तो इसी समय का इंतजार कर रही थी। तुरन्त उसने विमानके सारे आपातकालीन द्वार खोल दिये। योजना के अनुरूप ही यात्रीतुरन्त उन द्वारों के नीचे कूदने लगे। वहीं आतंकियों ने भी अंधेरे में फायरिंग शुरू कर दी। किन्तु नीरजा ने अपने साहस से लगभग सभी यात्रियों को बचा लियाथा। कुछ घायल अवश्य हो गये थे किन्तु ठीक थे अब विमान से भागने की बारी नीरजा की थी किन्तु तभी उसे बच्चों के रोने की आवाज सुनाई दी। दूसरी ओर पाकिस्तानी सेना के कमांडो भी विमान में आ चुके थे। उन्होंने तीन आतंकियों को मार गिराया । इधर नीरजा उन तीन बच्चों को खोज चुकी थी और उन्हें लेकर विमान के आपातकालीन द्वार की ओर बढ़ने लगी, कि अचानक बचा हुआ चैथा आतंकवादी उसके सामने आ खड़ा हुआ। नीरजा ने बच्चों को आपातकालीन द्वार की ओर धकेल दिया और स्वयं उस आतंकी से भिड़ गई। कहाँ वो दुर्दांत आतंकवादी और कहाँ वो 23 वर्ष की पतली-दुबली लड़की। आतंकी ने कई गोलियां उसके सीने में उतार डाली। नीरजा ने अपना बलिदान दे दिया। उस चैथे आतंकी को भी पाकिस्तानी कमांडों ने मार गिराया किन्तु वो नीरजा को न बचा सके। नीरजा भी अगर चाहती तो वो आपातकालीन द्वार से सबसे पहले भाग सकती थी। किन्तु वो भारत माता की सच्ची बेटी थी। उसने सबसे पहले सारा विमान खाली कराया और स्वयं को उन दुर्दांत राक्षसों के हाथों सौंप दिया। नीरजा के बलिदान के बाद भारत सरकार ने नीरजा को सर्वोच्च नागरिक सम्मान अशोक चक्र प्रदान किया तो वहीं पाकिस्तान कीसरकार ने भी नीरजा को तमगा-ए-इन्सानिय त प्रदान किया। नीरजा वास्तव में स्वतंत्र भारत की महानतम विरांगना है। ऐसी विरागना को मै कोटि-कोटि नमन करता हूँ।
(2004 में नीरजा भनोत पर टिकट भी जारी हो चुका है।)
साभार-स्वर्णिम हिंद का स्वर्णिम स्वप्न —
CONTACT :- CHANDRAKANT VAJPEYI. chandrakantvjp@gmail.com +919730500506.
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