Sunday, 21 July 2013

सूचना कानून के दायरे में राजनीतिक दल

०६ जून २०१३. /  २१ जुलाई २०१३.
कृपया राजनीतिक दल  अपनी उत्तम विश्वसनीय छबि बनाने और देश हित का विचार करके 

०४  जून २०१३   के पूर्व की सूचनाए राजनीतिक दलो पर लागू नही करने के नियमों '  की मांग करें 
और 
इस आधार  पर  मुख्य सूचना आयुक्त उक्त घोषणा को स्वीकृती देवें तो अधिक उचित होगा  |

………………. चंद्रकांत वाजपेयी

                         कितना हास्यास्पद और दु:खद चित्र रहा है कि 'प्रथम दर्शन में लगभग सभी राजनीतिक दलों द्वारा केन्द्रीय सूचना आयोग की उक्त घोषणा का स्वागत करने का नाटक किया गया', फिर कुछ ही क्षणों में केवल भाजपा को छोड़कर सभी राजनीतिक दलों ने इस घोषणा को अस्वीकार करनें की घोषणा की । फिर देखते ही देखते भाजपा,  जिसनें राजनीति में शुचिता लानें वाली उक्त घोषणा को सार्थक कदम कहा और उसका समर्थन किया था,  उसनें भी गिरगिट की तरह रंग बदला और उक्त घोषणा का विरोध करना शुरू कर दिया ।  ऐसा क्यों ?  क्या राजनीतिक दलों को आरटीआय क़ानून में आनें में कोई भय है ?  जब कोई अवैधानिक काम नहीं तो डर किस बात का ? 
मेरा सरकार सहित केन्द्रीय सूचना आयोग, केन्द्रीय चुनाव आयोग और सभी राजनीतिक दलों से आग्रह है कि देश की भलाई और राजनीतिक दलों पर जनता का विश्वास कायम करनें के लिए उक्त घोषणा के संदर्भान्तर्गत सूचना अधिकार का उपयोग केवल दिनांक ०४ / ०६ / २०१३ के पश्चात वाली सूचनाओं के लिए ही हो, राजनीतिक दलों के बारे में इस तारीख के पूर्व की सूचनाएं मांगनें का किसी को भी अधिकार ना रहे ।  स्मरण रहे कि इस  तारीख को सूचना आयोग ने उक्त घोषणा की थी ।

केन्द्रीय सूचना आयोग नें सच ही तो कहा है कि जनता के टैक्स के पैसों से 'सरकारीधन' की निर्मिती होती है और इस धन का प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष उपयोग राजनीतिक दल करते है ।"  जब केन्द्रीय सूचना आयोग के पास उक्त विषय में प्रमाण उपलब्ध है,  तो निश्चित ही आम जनता को उन राजनीतिक दलों से प्रश्न पूछनें का और जानकारियाँ  हासिल करनें का अधिकार होना ही चाहिए । आरटीआय क़ानून की स्थापना इसी आधार पर हुई है ।'

आज देशभर में आम जनता के मन में संदेह व्याप्त हो चुका है कि  

राजनीतिक दलों की फंडिंग लूट-खसोट से होती है 
और फंड देनें वाले महानुभाव या कारपोरेट घरानें अपने काले धन को 

इस फंडिंग के माध्यम से सफ़ेद कर लेते है ।

राजनीतिक दलों के प्रति सामान्य नागरिकों की नकारात्मक सोच व अविश्वास बढ़ रहा है जिसका कारण विभिन्न घोटालों के दु:खद अनुभव, राजनेताओं का उन घोटालो से जुड़ाव 
तथा 
राजनीतिक दलों को दिए गए धन के बदले में कुछ महानुभावो या धनदाता औद्योगिक / व्यापारिक घरानों द्वारा सरकार व राजनीतिज्ञों के माध्यम से सरकार के निर्णयों को अपनें हित में प्रभावित करना भी अनुभव में है ।  

संसद के अंदर नोट के बदले वोट के दृश्य आम जनता नें अपनी आंखो से देखे है । 
लोकतंत्र निर्माण के मंदिर अर्थात 
संसद " के अंदर राजनीतिक दलो के अनैतिकता भ्रष्ट-आचरण का यह एक ज्वलंत उदाहरण है ।   

इसी कारण अनैतिक और भ्रष्ट्राचारी शासक होने जैसे गंभीर अनेक आरोपों से विभिन्न दल और राजनेता ग्रसित है ।जनता के अंतर्मन में यह भी सोच  बनी है कि अपराध अंतर्गत   दंड (शिक्षा)   के बजाय राजनीतिक दलों द्वारा अपराधियों को संरक्षण मिलता है ,  क्योंकि वे चुनावी फंड की बड़ी राशि  देते है।   
इन सब कारणो से जनता का अविश्वास बढना स्वाभाविक है ।   

जनता में राजनीतिक  दलो के प्रति उपजे हुवे अविश्वास को समाप्त करने का  श्रेष्ठ  अवसर सूचना आयोग की उपरोक्त घोषणा से राजनीतिक दलो को मिला है ।

कृपया याद  रक्खे कि " सभी राजनीतिक  दलो  को बिना किसी नुकसान अपनी प्रामाणिकता सिद्ध करनें और जनता का विश्वास अर्जित करनें के लिए  

सूचना आयोग की उक्त घोषणा के साथ-साथ मेरे द्वारा प्रस्तुत किये गए 

उपरोक्त विशेष सुझाव / आग्रह  पर अमल करना हितावह है और देश की 

सुदृढ प्रकृती के लिये रामबाण इलाज है  । 

अतएव    देशहित में एकबार पुन:   सभी राजनीतिक दलो, केंद्र व राज्य सरकारे, केंदीय सूचना आयोग 
और मुख्य चुनाव आयुक्त महोदय से विनम्र अनुरोध है कि :--

" ०४  जून २०१३   के पूर्व की सूचनाए राजनीतिक दलो पर लागू नही करने के नियम "
 आधार  पर  केंद्रीय सूचना आयोग की उक्त  घोषणा  को  स्वीकृती  प्रदान  करे ।  

विश्वास है कि मेरे आग्रह और  निवेदन को सभी पक्ष सहमती प्रदान करेंगे जिसके लिये मै सदैव आभारी रहूंगा ।
धन्यवाद सहित,
चंद्रकांत रामचंद्र वाजपेयी.  { जेष्ठ नागरिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता } 
एल १ / ५, कासलीवाल विश्व, उल्कानगरी, पर्वतीनगर, गारखेडा, औरंगाबाद. महाराष्ट्र. ४३१००१   
  ईमेल  :  chandrakantvjp@gmail.com
      मोबा.  :  +  91  9730500506.

Friday, 19 July 2013

भारतीय जनता पार्टी की केन्द्रीय चुनाव अभियान समिति को चंद्रकांत वाजपेयी की विनंती |

मोहि कहां विश्राम..!!: भारतीय जनता पार्टी की केन्द्रीय चुनाव अभियान समिति...:
श्री अटल बिहारी वाजपेयी, श्री लालकृष्ष्ण आडवाणी एवं श्री राजनाथ सिंह के मार्गदर्शन में व श्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में निम्न रहेगी:...


२० जुलाई २०१३.
प्रेषक : --  चंद्रकांत वाजपेयी ( जेष्ठ नागरिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता ) औरंगाबाद. (महाराष्ट्र)
ईमेल :-- chandrakantvjp@gmail.com

प्रतिष्ठा में,
आदरणीय डॉ. मुरली मनोहर जोशी जी,
अध्यक्ष चुनाव घोषणा-पत्र  समिति ( चुनाव वर्ष २०१३ / २०१४. )
एवं उक्त समिति के समस्त पदाधिकारी-सदस्यगण |

माध्यम :--  श्री सुमंत विद्वांस जी.  
मोहि कहां विश्राम..!!  July 19, 2013 at 10:37 PM  
 http://blog.sumant.in/2013/07/Election-committee.html

मान्यवर,
सादर सप्रेम प्रणाम |
प्रसन्नता हुई कि 'भा.ज.पा. के चुनाव घोषणा-पत्र ' में सम्मिलित किये जानें वाले विषयो और इन विषयो की कार्यप्रणाली के सम्बन्ध मे जनता की ओर से जानकारीयां / राय मांगी गयी है |  इस हेतू भा.ज.पा. का स्वागत करते हुवे निम्नांकित विषय पर कार्यवाही का आग्रह करता हूँ |  कृपया निम्नलिखित को गहनता से पढ़ें और उल्लेखित चिंतन व प्रक्रिया को घोषणा-पत्र में सम्मिलित करते हुवे देश में सुख - समृद्धी, प्रामाणिकता और सुराज्य स्थापना की दिशा में इसे क्रियान्वित कर बतलाये | |  उल्लेखित चुनौती को भाजपा स्वीकार करे यह अपेक्षित तथा निवेदित है, इस हेतु मै सदैव आभारी रहूंगा |

" राष्ट्रीय समस्या पर विशेष ध्यानाकर्षण "

समस्या के उद्भव का कारण और निदान प्रक्रिया


" शासन तथा नागरिको के बीच पनपा अविश्वास देश की प्रगती, सुरक्षा, स्थायी-शासक बने रहने की भूमिका, व्यक्तियो की मनमानी, भ्रष्ट्राचार, अत्याचार, अनाचार, अन्याय और महंगाई का कारक होता है |  अतएव अच्छे और सच्चे लोकतंत्र की धारणा से संचालित होनेवाले तथा देश में प्रामाणिकता, सुख-साम्र्द्धी व सुराज्य व्यवस्था स्थापित करानें की मंशा रखनें वाले शासन कर्ताओं / शासन निर्देशकों ने जनता का अविश्वास  समाप्त करनें की प्रक्रिया को तुरंत क्रियान्वित करना चाहिए |"

' आज देशभर में सर्वत्र नागरिकों व शासन के मध्य परस्पर अविश्वास की स्थिती बनी है, जो  एक राष्ट्रीय समस्या बन चुकी है । इस समस्या को दूर करनें के लिए सार्वजनिक क्षेत्रो में शासन, उम्मीदवार और नागरीकोने पूर्ण पारदर्शी व्यवस्थाये व पारदर्शी व्यवहार स्थापित करनें पर उपरोक्त समस्या का निदान होगा।'


----- समस्या निदान के दो उपाय निम्नानुसार है. -----

(१) " विशेष रूप से भा.ज.पा सरकारे गोपनीयता न रखकर सभी कार्यालयो के प्रतिदिनके क्रियाकलाप के सारांश,सभी आदेश / निर्देश और कार्यालयीन रोकडबही के प्रतिदिन के रेखांकितअभिलेख के पृष्ठ को प्रत्येक दिन सूचना पटल पर चस्पाये व चस्पाये गये हर कागज की प्रतिलिपी एक सप्ताह के अंदर वेबसाईट पर अपलोड करना अनिवार्य और बंधनकारी करे | जिस स्थान पर संभव हो वहाँ के प्रत्येक कार्यालय में 'वेबसाईट से संलग्न ईकैशबुक  का संचालन अनिवार्य और बंधनात्मक किया जाए तो, निश्चित ही कोई समस्या नही रहेगी।

(२)  भाजपा का हर उम्मीदवार यदि मतदाताओं को चुनाव पूर्व एक वैधानिक वचन-पत्र ( एफिडेविट ) प्रस्तुत करेगा कि " चुनाव में उम्मीदवारी की शासकीय स्वीकृति की घोषणा के दिन उम्मीदवार और उसके परिवार के अति निकट सदस्यों की उपलब्बध सम्पत्ती तथा उनकी विगत माह की कुल आय तथा व्यय के ब्यौरे को प्रस्तुत करानें के लिए बंधनकारी है |  साथ में वह उक्त वचन पत्र में यह भी वचन देगा कि चुनाव में विजयी होनें के बाद हर माह या हर दूसरे माह उपरोक्तानुसार संपत्ति और कुल आय व्यय के ब्यौरे को सार्वजनिक पटल पर चस्पानें और चास्पाये गए हर ब्यौरे को ब्यौरा सार्वजनिक करने की तिथि से १० दिन के अंदर वेबसाईट पर प्रस्तुत करनें के लिए बंधनकारी रहेगा, और इस बंधन के आधार पर वह मत मांग रहा है | वचन पत्र में यह भी उल्लेख हो कि यदि उम्मीदवार उक्त वचन पूर्ति करानें में असफल होता है तो उसका पद वचन पूर्ति अभाव दिन से स्वमेव निरस्त हो जावेगा, यह वैधानिक वचन उम्मीदवार स्वयं अपनी ओर से विश्वसनीयता कायम रखनें के लिए दे रहा और इस आधार पर ........................पद पर उम्मीदवारी तय कारते हुवे मतदाताओं से उसके पक्ष में मत देनें की विनंती कर रहा है |


शासन, उम्मीदवार और नागरिक उपरोक्त समस्या निदान को सहज व्यवहार में ला सकते है तथा देश में परस्पर विश्वास का स्थायी वातावरण निर्मित कर सुख -समृद्धि, प्रामाणिकता और सुराज की स्थापना कर सकते है ।

अतएव यह पुन:आग्रह है कि  'केन्द्रीय चुनाव घोषणा-पत्र समिति' उक्त विषय और व्यावहारिकता को महत्त्व देकर कर्तव्य करें |

शुभकामना एवं धन्यवाद सहित,

राष्ट्रहित चिन्तक,

---- चंद्रकांत वाजपेयी ( जेष्ठ नागरिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता ) औरंगाबाद. (महाराष्ट्र)
ईमेल :-- chandrakantvjp@gmail.com

Tuesday, 16 July 2013

कृपया मा.श्री राजनाथ सिंह जी, श्री नरेन्द्र मोदीजी, श्री शिवराज सिंह चौहानजी, श्री नरेन्द्र सिंह तोमर जी, और केन्द्रीय चुनाव घोषणा-पत्र समिति भा.ज.पा. इस चुनौती को स्वीकार करने का सामर्थ्य प्रस्तुत करें |

Shri Rajnath Singh 2013 - Present (National President, Bharatiya Janata Party)

17 / 07 / 2013.   At  09:45 Hrs.(  webmaster@bjp.org/ At 10:16 Hrs. (http://www.itcellmpbjp.org/election-manifesto.html


कृपया मा.श्री राजनाथ सिंह जी, श्री नरेन्द्र मोदीजी, श्री शिवराज सिंह चौहानजी, श्री नरेन्द्र सिंह तोमर जी, और केन्द्रीय चुनाव घोषणा-पत्र समिति भा.ज.पा. इस चुनौती को 
स्वीकार करने का सामर्थ्य प्रस्तुत कर सकेंगे ?
प्रेषण माध्यम :--(1) webmaster@bjp.org  (2) http://www.itcellmpbjp.org/election-manifesto.html

विषय :  ' भा.ज.पा. के चुनाव घोषणा-पत्र ' बाबद 'विशेष निवेदन' |
               [ शासकीय कार्य में  पूर्ण पारदर्शिता की स्थापना हेतू ]

(१) मा. प्रमुख जी, चुनाव घोषणा-पत्र समिति मध्यप्रदेश भाजपा एवं माननीय राज चड्ढा जी, {वरिष्ठ सदस्य चुनाव घोषणा-पत्र समिति भा.ज.पा.मध्यप्रदेश}

(२) प्रमुख अखिल भारतीय चुनाव घोषणा-पत्र समिति भा.ज.पा.,केन्द्रीय कार्या.भाजपा,दिल्ली००१  

 सादर सप्रेम प्रणाम | 
यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपने 'भा.ज.पा. के चुनाव घोषणा-पत्र ' में सम्मिलित किये जानें वाले विषयो और इन विषयो की कार्यप्रणाली के सम्बन्ध मे जनता की ओर से जानकारीयां / राय   मांगी है |  भा.ज.पा. और आपके उक्त प्रस्ताव का स्वागत करते हुवे निम्नांकित विषय पर कार्यवाही का आग्रह करता हूँ |  कृपया निम्न को गहनता से पढ़ें और उल्लेखित चिंतन व प्रक्रिया को घोषणा-पत्र में सम्मिलित करते हुवे देश में इसे  क्रियान्वित कर बतलाये| यह विशेष सादर निवेदन है कि भारत में सुराज्य की स्थापना हेतु विषय के क्रियान्वयन द्वारा म.प्र. को देश का प्रथम, पथ- प्रदर्शक राज्य और भारत में भा.ज.पा. द्वारा पूर्ण पारदर्शिता का शासन स्थापित किया जाए | इस चुनौती को भाजपा स्वीकार करे यह अपेक्षित तथा निवेदित है, इस हेतु मै सदैव आभारी रहूंगा |

---: 'विशेष निवेदन' :--- 
" शासन और नागरिको के बीच पनपा अविश्वास देश की प्रगती, सुरक्षा, स्थायी-शासक बने रहने की भूमिका, व्यक्तियो की मनमानी, भ्रष्ट्राचार, अत्याचार, अनाचार, अन्याय और महंगाई का कारक है, अत: अच्छे और सच्चे लोकतंत्र की धारणा से संचालित होनेवाले तथा देश में सुराज्य व्यवस्था स्थापित करानें की मंशा रखनें वाले शासन कर्ताओं / शासन निर्देशकों ने जनता का अविश्वास  समाप्त करनें की प्रक्रिया को तुरंत क्रियान्वित करना चाहिए |" 
'मध्यप्रदेश सहित भारत के हर राज्य में नागरिकों व शासन के मध्य परस्पर अविश्वास की स्थिती बनी है, जो अब एक राष्ट्रीय समस्या है । इस समस्या को दूर करनें के लिए सार्वजनिक क्षेत्रो में शासन और नागरीकोने पूर्ण पारदर्शी व्यवस्थाये व पारदर्शी व्यवहार स्थापित करनें पर उपरोक्त समस्या का निदान होगा।' 

----- समस्या निदान का उपाय निम्नानुसार है. -----

" विशेष रूप से भा.ज.पा सरकारे गोपनीयता न रखकर सभी कार्यालयो के प्रतिदिनके क्रियाकलाप के सारांश,सभी आदेश / निर्देश और कार्यालयीन रोकडबही के प्रतिदिन के रेखांकितअभिलेख के पृष्ठ को प्रत्येक दिन सूचना पटल पर चस्पाये व चस्पाये गये हर कागज की प्रतिलिपी एक सप्ताह के अंदर वेबसाईट पर अपलोड करना अनिवार्य और बंधनकारी करे | जिस स्थान पर संभव हो वहाँ के प्रत्येक कार्यालय में 'वेबसाईट से संलग्न ईकैशबुक  का संचालन अनिवार्य और बंधनात्मक किया जाए तो, निश्चित ही कोई समस्या नही रहेगी।"

शासन और नागरिक उपरोक्त समस्या निदान को सहज व्यवहार में ला सकते है । 
अतएव यह पुन:आग्रह है कि भाजपा मध्यप्रदेश व 'केन्द्रीय चुनाव घोषणा-पत्र समिति' उक्त विषय और व्यावहारिकता को महत्त्व देकर कर्तव्य करें | 

शुभकामना एवं धन्यवाद सहित,

राष्ट्रहित चिन्तक,

---- चंद्रकांत वाजपेयी ( जेष्ठ नागरिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता ) औरंगाबाद. (महाराष्ट्र)  ईमेल :-- chandrakantvjp@gmail.com


Regards,

CHANDRAKANT  VAJPEYI.
Sr. ctzn & Social Worker, Aurangabad.
Mob. No. :  +91 9730500506.

क्या श्री नरेन्द्र मोदीजी , श्री शिवराज सिंह चौहानजी और भा.ज.पा. इस चुनौती को स्वीकार करने का सामर्थ्य प्रस्तुत कर सकेंगे ?

१६ / ०७ /२०१३  १९ : ४७ बजे   Chandrakant Vajpeyiposted toRaj Chaddha  

Monday, 15 July 2013

परिवार की रक्षा के लिये आज भारतीय नागरीको व पत्रकारो ने इन प्रश्नो के उत्तर खोजना भी अनिवार्य है ।



" क्या ये अत्यंत महत्वपूर्ण सवाल नहीं है ? "


       न्यों की तरह कारपोरेट घरानों को भी लोकपाल के अधीन क्यों 
नहीं लाया जाए ? कारपोरेट घरानों को लोकपाल के अधीन लानें का 
विरोध कहां से और क्यों हो रहा है ? क्या देश में व्याप्त भ्रष्ट्राचार रोकनें के 
लिए यह जानना नागरिकों का हक नहीं है ?   यदि " हाँ " तो इस विषय 
को जानने के लिये निम्नांकित प्रश्नो को पढे और उत्तर ढूंढें :--


कारपोरेट घरानों को लोकपाल के अधीन रखनें का विरोध क्यो ?
यह विरोध राजनीतिकदल सर्वसम्मति से क्यों कर रहें है ? 
क्या इनके बीच कोई समझौता या सौदा तो नहीं हुआ है ? 

क्या ऐसा भी कोई कारण है कि जिससे ये दल कारपोरेट 
 घरानों के सहयोग से कोई आर्थिक या अन्य प्रकार
का भ्रष्ट्राचार करे, इस प्रकार का कटु विचार करने का कारण 
यह है कि यदि ऐसा नही होता तो किस कारण से ये 
राजनीतिक दल कारपोरेट घरानोको लोकपाल के 
अधीन लाने का विरोध कर रहे है ? 

समाचार – सूचना माध्यमों से 
पता चला है कि ‘कॉंग्रेस के पास १६०० करोड और भाजपा 
के पास ८०० करोड रूपये राशि चुनाव फंड के लिए शेष है, 
यदि यह जानकारी सत्य है तो सवाल पैदा होना स्वाभाविक है 
इतनी बडी राशिया इन दलों के पास कहा से और कैसे आई ?

उक्त राशियो के उपलब्धकर्ता कौन व्यक्ति व कौनसे कारपोरेट घराने है  
  जिन्हे कांग्रेस - भाजपा और अन्य राजनीतिक दल मिलकर 'लोकपाल के अधीन लाने से बचाने का' पूरी तरह से प्रयत्न कर रहे है ? 
क्या आज भारत की संसद,  बाह्य महानुभावो या कारपोरेट घरानो के दिशा -निर्देशो के अनुसार संचालित होकर, उनके संरक्षण का विचार करके ही देश के कानून बनाने के लिये बाध्य हो गयी है ? 

" अगर ऐसा नही  ही तो फिर क्यो राजनीतिक दलो 

द्वारा कारपोरेट घरानो को 'लोकपाल के अधीन लाने 

का विरोध किया गया है  या  किया जा रहा है  ?"  


……… चंद्रकांत वाजपेयी [ जेष्ठ नागरिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता, औरंगाबाद ]

ईमेल :  chandrakantvjp@gmail.com
  



Saturday, 13 July 2013

एक दिन के लिए प्रधानमंत्री |


अगर आपको एक दिन के लिए प्रधानमंत्री बना दिया जाए तो आप एक बड़ा काम क्या करेंगे. चुनिंदा जवाब ABP न्यूज़ पर दिखाए जाएंगे. ‪#‎pradhanmantri‬



Chandrakant Vajpeyi शासकीय कार्य में पारदर्शकता 


का अभाव शासन - प्रशासन और नागरीको के बीच अविश्वास 

को बहुत ज्यादा तीव्र करता है।" 


शासन और नागरिको के बीच पनपा अविश्वास देश की 

प्रगती, सुरक्षा, स्थायी-शासक बने रहने की भूमिका, व्यक्तियो

की मनमानी, भ्रष्ट्राचार, अत्याचार, अनाचार, अन्याय और 

महंगाई का कारक है,  देश की यह एक बहुत बड़ी राष्ट्रीय 

समस्या बनी है  जिसे तुरंत रोकना अति आवश्यक है ।


सार्वजनिक क्षेत्रो में शासन और नागरीको ने पारदर्शी 

व्यवस्थाये अनिवार्यत: व्यवहार में लाने पर उपरोक्त समस्या 

का निदान होगा । अत: विशेष रूप से सरकारे गोपनीयता न 

रखकर सभी कार्यालयो के प्रतिदिन के क्रियाकलाप के सारांश, 

सभी आदेश / निर्देश और कार्यालयीन रोकडबही के प्रतिदिन 

के रेखांकित अभिलेख के पृष्ठ को प्रत्येक दिन सूचना पटल पर 

चस्पाये व चस्पाये गये हर कागज की प्रतिलिपी एक सप्ताह के 

अंदर वेबसाईट पर अपलोड करना अनिवार्य और बंधनकारी 

करे तो, निश्चित ही कोई समस्या नही रहेगी। 


अतएव यदि मुझे एक दिन के लिए भी प्रधानमंत्री बनाया 

जाता है तो सार्वजनिक कार्यो के संपूर्ण व्यवहारो को पारदर्शी 

बनाने की व्यवस्था उपरोक्तानुसार करानें के आदेश दूंगा तथा 

इस आदेश के स्थायी क्रियान्वयन के लिए एक समिति गठित 

कर दूँगा, जिससे देश में स्थायी रूप से शासन और आम 

जनता के बीच विश्वास स्थापित हो कर देश में प्रगति, शान्ति 

और आम नागरिक को सुख-प्रसन्नता की अनुभूति हो सके |
 
……… चंद्रकांत वाजपेयी. { जेष्ठ नागरिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता, औरंगाबाद }

ईमेल  :  chandrakantvjp@gmail.com

Friday, 12 July 2013

स्वत:च्या हक्काच्या संरक्षणा साठी निर्भिक होवून राष्ट्रपति साहेबाना तात्काळ ईमेल पाठविणे आवश्यक ।


" आता वेळ आली आहे,  कृपाकरून ही वेळ दवडू नका | " 

स्वत:च्या हक्काच्या संरक्षणा साठी निर्भिक होवून 

राष्ट्रपति साहेबाना तात्काळ ईमेल पाठविणे आवश्यक । 
आता वेळ आली आहे,
"कृपाकरून ही वेळ दवडू नका"


आपला हक्क सारला जाण्याची शक्यता आहे, तेव्हा या हक्काच्या संरक्षणा साठी निर्भिक होवून राष्ट्रपति साहेबाना देशाचे पूर्व मुख्य सुचना आयुक्त श्री शैलेश गांधी यांनी पाठविलेल्या ईमेलची प्रत तुमच्या स्वत: कडून स्वत:च्या नावाने पाठविण्याचे करावे | 
  || " विसरू नका वेळेला महत्व असते " || 

भारतीय नागरिक बंधू भगिनिनों, 
आपल्या सर्वांच्या मुळभूत हक्का पैकी एक हक्क आहे  " माहितीचा अधिकार " सर्वश्री अण्णा साहेब हजारे, मेघाताई पाटकर, शैलेश गांधी, अरविंद केजरीवाल आणि शेकडो-हजारो सज्जनांनी १४ वर्षे अतिशय मेहनत करून, कारावास भोगून व शासनाशी लढाई लढून सन २००५ मध्ये हां कायदा देशात लागू करण्यास शासनास भाग पाडले | याच कायद्याला " आरटीआय " असे पण म्हणतात | मा. अण्णाच्या अनेक वर्षाच्या चळवळीतून लोक RTI अधिकाराचा उपयोग करण्यास शिकले, परिणामत: भ्रष्ट्राचारमुक्ति करणाच्या दिशेने हायकोर्ट व सुप्रीम कोर्टाचे अतिशय महत्वाचे निर्णय आले आहेत  |  जसे २ वर्षासाठी दंडित अपराधी याना उमेदवारी नाही, राजकीय पक्ष आरटीआय अंतर्गत त्या मुळे पक्षाची आर्थिक माहिती सार्वजनिक, जातीचे राजकारणावर कुर्हाड अर्थात जातीय आधारावर रैली वर बंदी इत्यादि त्या मुळे आता कायदा विहीन शासन तसेच भ्रष्ट्राचार करणार्या राजनेत्यान्च्या पाया खालची जमींन  ढासळू लागण्याची वेळ आली आहे  |
आता या वेळी फक्त अपराधी-भ्रष्ट्राचारी आणि सत्तेसाठी पैसा लूबाडणारे राजकारणी तसेच केवळ त्यांच्या पावलावर पावले टाकून चालणारे, जी हुजुरी करून भ्रष्ट्राचाराला पोसणारे कांही सरकारी अधिकारी - कर्मचारी एकत्र येवून स्वत:चा जीव वाचविण्या साठी " एक अध्यादेश देशात लागू करण्याचा प्रयत्न करीत आहे  | ते सर्व लोक या अध्यादेशाचे मार्फत आपला मूळभूत हक्क ' आरटीआय ' हिसकवण्याची किंवा या कायाद्यास कमकुवत करण्याची वेळ आणताहेत की काय असे वाटते  | म्हणूनच आता नागरिकानी सज्ज होवून, आपला हक्क सारला जाण्याची शक्यता असल्याने आपल्या हक्काच्या संरक्षणा साठी निर्भिक होवून मा. राष्ट्रपति साहेबाना देशाचे पूर्व मुख्य सुचना आयुक्त श्री शैलेश गांधी यांनी पाठविलेल्या ईमेलची प्रत स्वत: कडून पाठवावी आणि आपल्या ईमेल ची प्रत ईमेलआयडी shaileshgan@gmail.com  किंवा आयडी chandrakantvjp@gmail.com वर पाठवावी ही विनंती  | श्री शैलेश गांधी यांनी राष्ट्रपति साहेबांना पाठविलेल्या ईमेलची प्रत खालील प्रमाणे आहे :--

To
Shri Pranab Mukherjee,
President of India. 
Email : President of India <secy.president@rb.nic.in>

Dear Sir,
There are reports that the Government has decided to promulgate an ordinance to amend the RTI Act. The ostensible purpose is to counter the decision of the CIC declaring six political parties as Public authorities which are subject to the Right to Information Act. Representatives of all political parties have stated that they believe the CIC decision is unsound legally and hence they are opposing it. If they are being truthful, they can certainly go in a writ to the Courts. Hundreds of CIC decisions have been quashed by the Courts. 
I am sure you realise that an ordinance should only be promulgated when there is a great urgency. Article 123 of the Constitution states (1) If at any time, except when both Houses of Parliament are in session, the President is satisfied that circumstances exist which render it necessary for him to take immediate action, he may promulgate such Ordinance as the circumstances appear to him to require. 
In the instant case citizens cannot see any reason which justifies an ordinance. Curtailing citizen's fundamental right and issuing an ordinance to frustrate a statutory order are morally and legally repugnant. Frustrating an existing law arbitrarily, will not promote the rule of law. I plead with you to consider whether it would be right to curb citizen's fundamental rights by ordinance when there appears to be no need for immediate action. 
If you do issue the said ordinance, i am hoping you will share the reasons for the immediate action with citizens.

Best regards,

shailesh gandhi
Former Central Information Commissioner .

Saturday, 6 July 2013

नेपानगर के छात्रो के परीक्षा केंद्र की समस्या के तुरंत निदान बाबद|