" क्या ये अत्यंत महत्वपूर्ण सवाल नहीं है ? "
अन्यों की तरह कारपोरेट घरानों को भी लोकपाल के अधीन क्यों
नहीं लाया जाए ? कारपोरेट घरानों को लोकपाल के अधीन लानें का
विरोध कहां से और क्यों हो रहा है ? क्या देश में व्याप्त भ्रष्ट्राचार रोकनें के
लिए यह जानना नागरिकों का हक नहीं है ? यदि " हाँ " तो इस विषय
को जानने के लिये निम्नांकित प्रश्नो को पढे और उत्तर ढूंढें :--
कारपोरेट घरानों को लोकपाल के अधीन रखनें का विरोध क्यो ?
यह विरोध राजनीतिकदल सर्वसम्मति से क्यों कर रहें है ?
क्या इनके बीच कोई समझौता या सौदा तो नहीं हुआ है ?
क्या ऐसा भी कोई कारण है कि जिससे ये दल कारपोरेट
घरानों के सहयोग से कोई आर्थिक या अन्य प्रकार
का भ्रष्ट्राचार करे, इस प्रकार का कटु विचार करने का कारण
यह है कि यदि ऐसा नही होता तो किस कारण से ये
राजनीतिक दल कारपोरेट घरानोको लोकपाल के
अधीन लाने का विरोध कर रहे है ?
अधीन लाने का विरोध कर रहे है ?
समाचार – सूचना माध्यमों से
पता चला है कि ‘कॉंग्रेस के पास १६०० करोड और भाजपा
के पास ८०० करोड रूपये राशि चुनाव फंड के लिए शेष है,
यदि यह जानकारी सत्य है तो सवाल पैदा होना स्वाभाविक है
इतनी बडी राशिया इन दलों के पास कहा से और कैसे आई ?
इतनी बडी राशिया इन दलों के पास कहा से और कैसे आई ?
उक्त राशियो के उपलब्धकर्ता कौन व्यक्ति व कौनसे कारपोरेट घराने है
जिन्हे कांग्रेस - भाजपा और अन्य राजनीतिक दल मिलकर 'लोकपाल के अधीन लाने से बचाने का' पूरी तरह से प्रयत्न कर रहे है ?
क्या आज भारत की संसद, बाह्य महानुभावो या कारपोरेट घरानो के दिशा -निर्देशो के अनुसार संचालित होकर, उनके संरक्षण का विचार करके ही देश के कानून बनाने के लिये बाध्य हो गयी है ?
" अगर ऐसा नही ही तो फिर क्यो राजनीतिक दलो
द्वारा कारपोरेट घरानो को 'लोकपाल के अधीन लाने
का विरोध किया गया है या किया जा रहा है ?"
द्वारा कारपोरेट घरानो को 'लोकपाल के अधीन लाने
का विरोध किया गया है या किया जा रहा है ?"
……… चंद्रकांत वाजपेयी [ जेष्ठ नागरिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता, औरंगाबाद ]
ईमेल : chandrakantvjp@gmail.com
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