Sunday, 21 July 2013

सूचना कानून के दायरे में राजनीतिक दल

०६ जून २०१३. /  २१ जुलाई २०१३.
कृपया राजनीतिक दल  अपनी उत्तम विश्वसनीय छबि बनाने और देश हित का विचार करके 

०४  जून २०१३   के पूर्व की सूचनाए राजनीतिक दलो पर लागू नही करने के नियमों '  की मांग करें 
और 
इस आधार  पर  मुख्य सूचना आयुक्त उक्त घोषणा को स्वीकृती देवें तो अधिक उचित होगा  |

………………. चंद्रकांत वाजपेयी

                         कितना हास्यास्पद और दु:खद चित्र रहा है कि 'प्रथम दर्शन में लगभग सभी राजनीतिक दलों द्वारा केन्द्रीय सूचना आयोग की उक्त घोषणा का स्वागत करने का नाटक किया गया', फिर कुछ ही क्षणों में केवल भाजपा को छोड़कर सभी राजनीतिक दलों ने इस घोषणा को अस्वीकार करनें की घोषणा की । फिर देखते ही देखते भाजपा,  जिसनें राजनीति में शुचिता लानें वाली उक्त घोषणा को सार्थक कदम कहा और उसका समर्थन किया था,  उसनें भी गिरगिट की तरह रंग बदला और उक्त घोषणा का विरोध करना शुरू कर दिया ।  ऐसा क्यों ?  क्या राजनीतिक दलों को आरटीआय क़ानून में आनें में कोई भय है ?  जब कोई अवैधानिक काम नहीं तो डर किस बात का ? 
मेरा सरकार सहित केन्द्रीय सूचना आयोग, केन्द्रीय चुनाव आयोग और सभी राजनीतिक दलों से आग्रह है कि देश की भलाई और राजनीतिक दलों पर जनता का विश्वास कायम करनें के लिए उक्त घोषणा के संदर्भान्तर्गत सूचना अधिकार का उपयोग केवल दिनांक ०४ / ०६ / २०१३ के पश्चात वाली सूचनाओं के लिए ही हो, राजनीतिक दलों के बारे में इस तारीख के पूर्व की सूचनाएं मांगनें का किसी को भी अधिकार ना रहे ।  स्मरण रहे कि इस  तारीख को सूचना आयोग ने उक्त घोषणा की थी ।

केन्द्रीय सूचना आयोग नें सच ही तो कहा है कि जनता के टैक्स के पैसों से 'सरकारीधन' की निर्मिती होती है और इस धन का प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष उपयोग राजनीतिक दल करते है ।"  जब केन्द्रीय सूचना आयोग के पास उक्त विषय में प्रमाण उपलब्ध है,  तो निश्चित ही आम जनता को उन राजनीतिक दलों से प्रश्न पूछनें का और जानकारियाँ  हासिल करनें का अधिकार होना ही चाहिए । आरटीआय क़ानून की स्थापना इसी आधार पर हुई है ।'

आज देशभर में आम जनता के मन में संदेह व्याप्त हो चुका है कि  

राजनीतिक दलों की फंडिंग लूट-खसोट से होती है 
और फंड देनें वाले महानुभाव या कारपोरेट घरानें अपने काले धन को 

इस फंडिंग के माध्यम से सफ़ेद कर लेते है ।

राजनीतिक दलों के प्रति सामान्य नागरिकों की नकारात्मक सोच व अविश्वास बढ़ रहा है जिसका कारण विभिन्न घोटालों के दु:खद अनुभव, राजनेताओं का उन घोटालो से जुड़ाव 
तथा 
राजनीतिक दलों को दिए गए धन के बदले में कुछ महानुभावो या धनदाता औद्योगिक / व्यापारिक घरानों द्वारा सरकार व राजनीतिज्ञों के माध्यम से सरकार के निर्णयों को अपनें हित में प्रभावित करना भी अनुभव में है ।  

संसद के अंदर नोट के बदले वोट के दृश्य आम जनता नें अपनी आंखो से देखे है । 
लोकतंत्र निर्माण के मंदिर अर्थात 
संसद " के अंदर राजनीतिक दलो के अनैतिकता भ्रष्ट-आचरण का यह एक ज्वलंत उदाहरण है ।   

इसी कारण अनैतिक और भ्रष्ट्राचारी शासक होने जैसे गंभीर अनेक आरोपों से विभिन्न दल और राजनेता ग्रसित है ।जनता के अंतर्मन में यह भी सोच  बनी है कि अपराध अंतर्गत   दंड (शिक्षा)   के बजाय राजनीतिक दलों द्वारा अपराधियों को संरक्षण मिलता है ,  क्योंकि वे चुनावी फंड की बड़ी राशि  देते है।   
इन सब कारणो से जनता का अविश्वास बढना स्वाभाविक है ।   

जनता में राजनीतिक  दलो के प्रति उपजे हुवे अविश्वास को समाप्त करने का  श्रेष्ठ  अवसर सूचना आयोग की उपरोक्त घोषणा से राजनीतिक दलो को मिला है ।

कृपया याद  रक्खे कि " सभी राजनीतिक  दलो  को बिना किसी नुकसान अपनी प्रामाणिकता सिद्ध करनें और जनता का विश्वास अर्जित करनें के लिए  

सूचना आयोग की उक्त घोषणा के साथ-साथ मेरे द्वारा प्रस्तुत किये गए 

उपरोक्त विशेष सुझाव / आग्रह  पर अमल करना हितावह है और देश की 

सुदृढ प्रकृती के लिये रामबाण इलाज है  । 

अतएव    देशहित में एकबार पुन:   सभी राजनीतिक दलो, केंद्र व राज्य सरकारे, केंदीय सूचना आयोग 
और मुख्य चुनाव आयुक्त महोदय से विनम्र अनुरोध है कि :--

" ०४  जून २०१३   के पूर्व की सूचनाए राजनीतिक दलो पर लागू नही करने के नियम "
 आधार  पर  केंद्रीय सूचना आयोग की उक्त  घोषणा  को  स्वीकृती  प्रदान  करे ।  

विश्वास है कि मेरे आग्रह और  निवेदन को सभी पक्ष सहमती प्रदान करेंगे जिसके लिये मै सदैव आभारी रहूंगा ।
धन्यवाद सहित,
चंद्रकांत रामचंद्र वाजपेयी.  { जेष्ठ नागरिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता } 
एल १ / ५, कासलीवाल विश्व, उल्कानगरी, पर्वतीनगर, गारखेडा, औरंगाबाद. महाराष्ट्र. ४३१००१   
  ईमेल  :  chandrakantvjp@gmail.com
      मोबा.  :  +  91  9730500506.

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